दिल ही तो है, न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों
(संग-ओ-ख़िश्त = पत्थर और ईंट)
क़ैद-ए-हयात-ओ-बन्द-ए-ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले, आदमी ग़म से निजात पाए क्यों
(क़ैद-ए-हयात-ओ-बन्द-ए-ग़म = जीवन की क़ैद और दुःख का बंधन), (निजात = छुटकारा, मुक्ति)
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम, ग़ैर हमें उठाए क्यों
(दैर = मंदिर), (हरम = मस्जिद), (दर = दरवाज़ा, द्वार), (आस्ताँ = चौखट), (रहगुज़र = राह, पथ)
हाँ वह नहीं ख़ुदा परस्त, जाओ वह बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन-ओ-दिल अज़ीज़, उस की गली में जाए क्यों
(ख़ुदा परस्त = ईश्वर को माननेवाला), (दीन-ओ-दिल = धर्म और हृदय), (अज़ीज़ = प्रिय)
ग़ालिब-ए-ख़स्ता के बग़ैर, कौन-से काम बन्द हैं
रोइये ज़ार ज़ार क्या, कीजिये हाय हाय क्यों
(ग़ालिब-ए-ख़स्ता = दुर्दशाग्रस्त ग़ालिब), (ज़ार ज़ार = फूट-फूटकर)
-मिर्ज़ा ग़ालिब
पूरी ग़ज़ल, अर्थ के साथ, यहाँ देखें मीर-ओ-ग़ालिब
Dil hi to hai na sang-o-khisht dard se bhar na aaye kyon
Royenge ham hazaar baar, koi hamein sataaye kyon
Qaid-e-hayaat-o-band-e-gham asl me dono ek hain
Maut se pahle aadmi gham se nijaat paaye kyon
Dair naheen, haram naheen, dar naheen, aastaan naheen
Baithe hain rehguzar pe ham, ghair hamein uthaaye kyon
Haan wo naheen khuda parast, jaao wo bewafa sahi
Jisko ho deen-o-dil 'azeez, uski gali mein jaaye kyon
'Ghalib'-e-khasta ke baghair kaun se kaam band hain?
Roiye zaar-zaar kya, keejiye haay-haay kyon?
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों
(संग-ओ-ख़िश्त = पत्थर और ईंट)
क़ैद-ए-हयात-ओ-बन्द-ए-ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले, आदमी ग़म से निजात पाए क्यों
(क़ैद-ए-हयात-ओ-बन्द-ए-ग़म = जीवन की क़ैद और दुःख का बंधन), (निजात = छुटकारा, मुक्ति)
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम, ग़ैर हमें उठाए क्यों
(दैर = मंदिर), (हरम = मस्जिद), (दर = दरवाज़ा, द्वार), (आस्ताँ = चौखट), (रहगुज़र = राह, पथ)
हाँ वह नहीं ख़ुदा परस्त, जाओ वह बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन-ओ-दिल अज़ीज़, उस की गली में जाए क्यों
(ख़ुदा परस्त = ईश्वर को माननेवाला), (दीन-ओ-दिल = धर्म और हृदय), (अज़ीज़ = प्रिय)
ग़ालिब-ए-ख़स्ता के बग़ैर, कौन-से काम बन्द हैं
रोइये ज़ार ज़ार क्या, कीजिये हाय हाय क्यों
(ग़ालिब-ए-ख़स्ता = दुर्दशाग्रस्त ग़ालिब), (ज़ार ज़ार = फूट-फूटकर)
-मिर्ज़ा ग़ालिब
पूरी ग़ज़ल, अर्थ के साथ, यहाँ देखें मीर-ओ-ग़ालिब
Dil hi to hai na sang-o-khisht dard se bhar na aaye kyon
Royenge ham hazaar baar, koi hamein sataaye kyon
Qaid-e-hayaat-o-band-e-gham asl me dono ek hain
Maut se pahle aadmi gham se nijaat paaye kyon
Dair naheen, haram naheen, dar naheen, aastaan naheen
Baithe hain rehguzar pe ham, ghair hamein uthaaye kyon
Haan wo naheen khuda parast, jaao wo bewafa sahi
Jisko ho deen-o-dil 'azeez, uski gali mein jaaye kyon
'Ghalib'-e-khasta ke baghair kaun se kaam band hain?
Roiye zaar-zaar kya, keejiye haay-haay kyon?
आज समझ आया सब कुछ। जगजीत सिंह जी की बाकमाल गायकी जिसको बगैर मतलब समझे भी सुकून मिलता है। अब बहुत ज्यादा सुकून मिलेगा क्योंकि ग़ालिब साहब का ये कलम समझ आ गया।
ReplyDeleteकलम को कलाम पढ़ा जाए।
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