लब-ए-ख़ामोश से इज़हार-ए-तमन्ना चाहें
बात करने को भी तस्वीर का लहजा चाहें
(इज़हार-ए-तमन्ना = इच्छा प्रकट करना)
तू चले साथ तो आहट भी न आये अपनी
दरमियाँ हम भी न हो यूँ तुझे तन्हा चाहें
(दरमियाँ = बीच में)
ख़्वाब में रोयें तो एहसास हो सेराबी का
रेत पर सोयें मगर आँख में दरिया चाहें
(सेराब = भीगा हुआ, पानी से सींचा हुआ)
ऐसे तैराक भी देखे हैं 'मुज़फ़्फ़र' हमने
ग़र्क़ होने के लिये भी जो सहारा चाहें
(ग़र्क़ = डूबा हुआ, मग्न)
-मुज़फ़्फ़र वारसी
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
ज़ाहीरी आँखों से क्या देख सकेगा कोई
अपने बातों पे भी हम फ़ाश होना चाहें
जिस्म-पोशी को मिले चादर-ए-अफ़्लाक हमें
सर छुपाने के लिये वुस'अत-ए-सेहरा चाहें
[(जिस्म-पोशी = शरीर ढकने के लिए),
(चादर-ए-अफ़्लाक = आसमानों की चादर),
(वुस'अत-ए-सेहरा = जंगल का विस्तार)]
भेंट चढ़ जाऊँ न मैं अपने ही ख़ैर-ओ-शर की
ख़ून-ए-दिल ज़ब्त करे ज़ख़्म तमाशा चाहें
(ख़ैर-ओ-शर = अच्छाई और बुराई, नेकी और बदी, पुण्य और पाप)
ज़िन्दगी आँख से ओझल हो मगर ख़त्म न हो
एक जहाँ और पस-ए-पर्दा-ए-दुनिया चाहें
(पस-ए-पर्दा-ए-दुनिया = परदे के पीछे की दुनिया)
आज का दिन तो चलो कट ही गया जैसे भी कटा
अब ख़ुदा-बंद से ख़ैरियत-ए-फ़र्दा चाहें
(ख़ैरियत-ए-फ़र्दा = आने वाले कल की कुशलता)
Lab-e-khaamosh se izhaar-e-tamanna chaahen
Baat karne ko bhee tasveer ka lehja chaahen
Tu chale saath to aahat bhee na aaye apni
Darmiyaan ham bhee na ho yun tujhe tanha chaahen
Khwaab mein roye to ehsaas ho sairaabi ka
Ret par soyen magar aankh mein dariya chaahen
Aise tairaak bhee dekhe hain 'muzaffar' humne
Gharq hone ke liye bhee jo sahaara chaahen
-Muzaffar Warsi
बात करने को भी तस्वीर का लहजा चाहें
(इज़हार-ए-तमन्ना = इच्छा प्रकट करना)
तू चले साथ तो आहट भी न आये अपनी
दरमियाँ हम भी न हो यूँ तुझे तन्हा चाहें
(दरमियाँ = बीच में)
ख़्वाब में रोयें तो एहसास हो सेराबी का
रेत पर सोयें मगर आँख में दरिया चाहें
(सेराब = भीगा हुआ, पानी से सींचा हुआ)
ऐसे तैराक भी देखे हैं 'मुज़फ़्फ़र' हमने
ग़र्क़ होने के लिये भी जो सहारा चाहें
(ग़र्क़ = डूबा हुआ, मग्न)
-मुज़फ़्फ़र वारसी
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
ज़ाहीरी आँखों से क्या देख सकेगा कोई
अपने बातों पे भी हम फ़ाश होना चाहें
जिस्म-पोशी को मिले चादर-ए-अफ़्लाक हमें
सर छुपाने के लिये वुस'अत-ए-सेहरा चाहें
[(जिस्म-पोशी = शरीर ढकने के लिए),
(चादर-ए-अफ़्लाक = आसमानों की चादर),
(वुस'अत-ए-सेहरा = जंगल का विस्तार)]
भेंट चढ़ जाऊँ न मैं अपने ही ख़ैर-ओ-शर की
ख़ून-ए-दिल ज़ब्त करे ज़ख़्म तमाशा चाहें
(ख़ैर-ओ-शर = अच्छाई और बुराई, नेकी और बदी, पुण्य और पाप)
ज़िन्दगी आँख से ओझल हो मगर ख़त्म न हो
एक जहाँ और पस-ए-पर्दा-ए-दुनिया चाहें
(पस-ए-पर्दा-ए-दुनिया = परदे के पीछे की दुनिया)
आज का दिन तो चलो कट ही गया जैसे भी कटा
अब ख़ुदा-बंद से ख़ैरियत-ए-फ़र्दा चाहें
(ख़ैरियत-ए-फ़र्दा = आने वाले कल की कुशलता)
Lab-e-khaamosh se izhaar-e-tamanna chaahen
Baat karne ko bhee tasveer ka lehja chaahen
Tu chale saath to aahat bhee na aaye apni
Darmiyaan ham bhee na ho yun tujhe tanha chaahen
Khwaab mein roye to ehsaas ho sairaabi ka
Ret par soyen magar aankh mein dariya chaahen
Aise tairaak bhee dekhe hain 'muzaffar' humne
Gharq hone ke liye bhee jo sahaara chaahen
-Muzaffar Warsi
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