उम्र जलवों में बसर हो ज़रूरी तो नहीं
हर शब-ए-ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
(जलवा = तड़क-भड़क, शोभा), (बसर = गुज़ारा, जीवन-निर्वाह), (शब-ए-ग़म = दुःख की रात), (सहर = सवेरा)
चश्म-ए-साक़ी से पियो या लब-ए-साग़र से पियो
बेख़ुदी आठों पहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
(चश्म-ए-साक़ी = साक़ी की आँख), (लब-ए-साग़र = शराब के प्याले), (बेख़ुदी = बेख़बरी, आत्मविस्मृति)
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उनकी अगोश मे सर हो ये ज़रूरी तो नहीं
(अगोश = अंक, गोद, बगल)
शेख़ करता तो है मस्जिद में ख़ुदा को सजदे
उसके सजदों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं
(शेख़ = धर्माचार्य)
सब की नज़रों में हो साक़ी ये ज़रूरी है मगर
सब पे साक़ी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं
मयकशी के लिए 'ख़ामोशी' भरी दुनिया में
सिर्फ़ ख़य्याम का घर हो ये ज़रूरी तो नहीं
(ख़य्याम = फ़ारसी का प्रसिद्ध मदिरावादी कवि, जो नैशापुर नगर का निवासी था, मदिरा की प्रतीकवादी पद्दति में उसकी सर्वोत्तम काव्याभिव्यंजना हुई है )
-ख़ामोश देहलवी
Umr jalwon main basar ho ye zaruri to nahi
Har shab-e-ghum ki sehar ho ye zaruri to nahi
Chashm-e-saqi se piyo ya lab-e-saagar se piyo
Bekhudi aathoN pehar ho ye zaruri to nahi
Neend to dard ke bistar pe bhi aa sakti hai
Un ki aaghosh maiN sar ho ye zaruri to nahi
Shekh karta to hai masjid main khuda ko sajde
Us ke sajdoN maiN asar ho ye zaruri to nahi
Sab ki nazron me ho saaqi yeh zaruri hai magar
Sab pe saaqi ki nazar ho ye zaruri to nahi
Maikashi ke liye 'khamoshi' bhari duniya mein
Sirf khaiyyam ka ghar ho ye zaruri to nahi
-Khamosh Dehalvi
हर शब-ए-ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
(जलवा = तड़क-भड़क, शोभा), (बसर = गुज़ारा, जीवन-निर्वाह), (शब-ए-ग़म = दुःख की रात), (सहर = सवेरा)
चश्म-ए-साक़ी से पियो या लब-ए-साग़र से पियो
बेख़ुदी आठों पहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
(चश्म-ए-साक़ी = साक़ी की आँख), (लब-ए-साग़र = शराब के प्याले), (बेख़ुदी = बेख़बरी, आत्मविस्मृति)
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उनकी अगोश मे सर हो ये ज़रूरी तो नहीं
(अगोश = अंक, गोद, बगल)
शेख़ करता तो है मस्जिद में ख़ुदा को सजदे
उसके सजदों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं
(शेख़ = धर्माचार्य)
सब की नज़रों में हो साक़ी ये ज़रूरी है मगर
सब पे साक़ी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं
मयकशी के लिए 'ख़ामोशी' भरी दुनिया में
सिर्फ़ ख़य्याम का घर हो ये ज़रूरी तो नहीं
(ख़य्याम = फ़ारसी का प्रसिद्ध मदिरावादी कवि, जो नैशापुर नगर का निवासी था, मदिरा की प्रतीकवादी पद्दति में उसकी सर्वोत्तम काव्याभिव्यंजना हुई है )
-ख़ामोश देहलवी
Umr jalwon main basar ho ye zaruri to nahi
Har shab-e-ghum ki sehar ho ye zaruri to nahi
Chashm-e-saqi se piyo ya lab-e-saagar se piyo
Bekhudi aathoN pehar ho ye zaruri to nahi
Neend to dard ke bistar pe bhi aa sakti hai
Un ki aaghosh maiN sar ho ye zaruri to nahi
Shekh karta to hai masjid main khuda ko sajde
Us ke sajdoN maiN asar ho ye zaruri to nahi
Sab ki nazron me ho saaqi yeh zaruri hai magar
Sab pe saaqi ki nazar ho ye zaruri to nahi
Maikashi ke liye 'khamoshi' bhari duniya mein
Sirf khaiyyam ka ghar ho ye zaruri to nahi
-Khamosh Dehalvi
What is the meaning of Khyyaam here
ReplyDeleteKhyyaam is popular farsi poet
DeleteThe Makhta has been left out of the full ghazal
ReplyDeleteWhat is the meaning of Khyyaam here
ReplyDeleteमयकशी के लिए 'खामोशी' भरी दुनिया मे,
Deleteसिर्फ़ ख़य्याम का घर हो ये जरूरी तो नही..
~ख़ामोश देहलवी
ख़य्याम का मतलब - मधुप्रेमी, शराब पीने वाले व्यक्ति
DeleteJo kahte the bada dard hai vo kahaan sidhaar gaye ?
ReplyDeleteUnhone dawa li ki nahin
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