अब तो उठ सकता नहीं आँखों से बार-ए-इंतज़ार
किस तरह काटे कोई लैल-ओ-नहार-ए-इंतज़ार
(बार-ए-इंतज़ार = इंतज़ार का बोझ), (लैल-ओ-नहार-ए-इंतज़ार = इंतज़ार के रात और दिन)
उन की उल्फ़त का यक़ीं हो उन के आने की उम्मीद
हों ये दोनों सूरतें तब है बहार-ए-इंतज़ार
(उल्फ़त = मोहब्बत)
मेरी आहें नारसा मेरी दुआएँ ना-क़बूल
या इलाही क्या करूँ मैं शर्मसार-ए-इंतज़ार
(नारसा = जो पहुँच न सके), (शर्मसार-ए-इंतज़ार = इंतज़ार का पछतावा/ शर्मिंदगी/ पश्चाताप)
उन के ख़त की आरज़ू है उन के आमद का ख़याल
किस क़दर फैला हुआ है कारोबार-ए-इंतज़ार
(आमद = आगमन), (कारोबार-ए-इंतज़ार = इंतज़ार का व्यवसाय)
-हसरत मोहानी
Ab to uth sakta nahin aankhon se baar-e-intezaar
Kis tarah kaate koi lail-o-nahaar-e-intezaar
Unki ulfat ka yakeen ho unke aane ki ummeed
Hon ye dono suraten tab hai bahar-e-intezaar
Meri aahen narasaa meri duaayen na-qubool
Ya ilaahi kya karoon main sharmsar-e-intezaar
Unke khat ki aarzoo hai unke aamad ka khayaal
Kis kadar faila hua hai kaarobaar-e-intezaar
-Hasrat Mohani
किस तरह काटे कोई लैल-ओ-नहार-ए-इंतज़ार
(बार-ए-इंतज़ार = इंतज़ार का बोझ), (लैल-ओ-नहार-ए-इंतज़ार = इंतज़ार के रात और दिन)
उन की उल्फ़त का यक़ीं हो उन के आने की उम्मीद
हों ये दोनों सूरतें तब है बहार-ए-इंतज़ार
(उल्फ़त = मोहब्बत)
मेरी आहें नारसा मेरी दुआएँ ना-क़बूल
या इलाही क्या करूँ मैं शर्मसार-ए-इंतज़ार
(नारसा = जो पहुँच न सके), (शर्मसार-ए-इंतज़ार = इंतज़ार का पछतावा/ शर्मिंदगी/ पश्चाताप)
उन के ख़त की आरज़ू है उन के आमद का ख़याल
किस क़दर फैला हुआ है कारोबार-ए-इंतज़ार
(आमद = आगमन), (कारोबार-ए-इंतज़ार = इंतज़ार का व्यवसाय)
-हसरत मोहानी
Ab to uth sakta nahin aankhon se baar-e-intezaar
Kis tarah kaate koi lail-o-nahaar-e-intezaar
Unki ulfat ka yakeen ho unke aane ki ummeed
Hon ye dono suraten tab hai bahar-e-intezaar
Meri aahen narasaa meri duaayen na-qubool
Ya ilaahi kya karoon main sharmsar-e-intezaar
Unke khat ki aarzoo hai unke aamad ka khayaal
Kis kadar faila hua hai kaarobaar-e-intezaar
-Hasrat Mohani
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