अपने दिल को दोनों आलम से उठा सकता हूँ मैं
क्या समझती हो कि तुमको भी भुला सकता हूँ मैं
(आलम = दुनिया, जगत, संसार)
कौन तुमसे छीन सकता है मुझे क्या वहम है
खुद जुलेखा से भी तो दामन बचा सकता हूँ मैं
दिल मैं तुम पैदा करो पहले मेरी सी जुर्रतें
और फिर देखो कि तुमको क्या बना सकता हूँ मैं
दफ़न कर सकता हूँ सीने मैं तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफसाना बना सकता हूँ मैं
मैं कसम खाता हूं अपने नुत्क़ के एजाज़ की
तुमको बज़्म-ए-माह-ओ-अंजुम में बिठा सकता हूं मैं
(नुत्क़ = शब्द, वाणी, बोली, वाकशक्ति), (एजाज़ = चमत्कार, करामात), (बज़्म-ए-माह-ओ-अंजुम = चाँद सितारों की महफिल)
सर पे रख सकता हूं ताज-ए-किश्वर-ए-नूरानियाँ
महफ़िल-ए-खुरशीद को नीचा दिखा सकता हूं मैं
(ताज-ए-किश्वर-ए-नूरानियाँ = प्रकाश के देश का ताज), (महफ़िल-ए-खुरशीद = सूरज की महफ़िल)
मैं बहुत सरकश हूँ लेकिन इक तुम्हारे वास्ते
दिल बिछा सकता हूं मैं, आँखें बिछा सकता हूं मैं
(सरकश = उद्दंड, विद्रोही, बाग़ी)
तुम अगर रुठो तो इक तुमको मनाने के लिए
गीत गा सकता हूं मैं, आँसू बहा सकता हूं मैं
जज़्ब है दिल में मिरे दोनों जहाँ का सोज़-ओ-साज़
बरबत-ए-फ़ितरत का हर नग़्मा सुना सकता हूं मैं
तुम समझती हो कि हैं पर्दे बहुत से दरमियाँ
मैं यह कहता हूँ कि हर पर्दा उठा सकता हूँ मैं
तुम कि बन सकती हो हर महफ़िल में फिरदौस-ए-नज़र
मुझ को यह दावा कि हर महफ़िल पे छा सकता हूँ मैं
(फिरदौस-ए-नज़र = नज़रों के लिए स्वर्ग)
आओ मिल कर इन्किलाब-ए-ताज़ातर पैदा करें
दहर पर इस तरह छा जाएँ कि सब देखा करें
(इन्किलाब-ए-ताज़ातर = नई क्रांति), (दहर = ज़माना, समय, युग)
-मजाज़ लखनवी
Apne dil ko dono aalam se utha sakta hoon main
Kya samajhti ho ke tum ko bhi bhula skata hoon main
Kaun tum se cheen sakta hai mujhe, kya waham hai
Khud Zuleikha se bhi to daaman bacaa sakta hoon main
Dil mein tum paida karo pehle meri si jurratein
Aur phir dekho ke tum ko kya banaa sakta hoon main
Dafan kar sakta hoon seene mein tumhare raaz ko
Aur tum chaho to afsana bana sakta hoon main
Main qasam khata hoon apne nutaq ke aijaz ki
Tum ko bazm-e-mah-o-anjum mein baitha sakta hoon main
Sar pe rakh sakta hoon taj-e-kishwar-e-nooraniyan
Mehfil-e-khursheed ko neecha dikha sakta hoon main
Main bahut sarkash hoon lekin ek tumhaare waaste
Dil bicha sakta hoon, aankhen bicha sakta hoon main
Tum agar rootho to ek tumko manaane ke liye
Geet ga sakta hoon main aansu baha sakta hoon main
Jazb hain dil mein dono jahan ka soz-o-saz
Barbat-e-fitrat ka har naghma suna sakta hoon main
Tum samajhti ho ke hain parde bahut se darmiyan
Main ye kehta hoon ke har pardah utha sakta hoon main
Tum ke ban sakti ho har mehfil mein firdaus-e-nazar
Maujh ko ye daawa ke har mehfil pe chah sakta hoon main
Aao mil kar inqalab-e-tazaa-tar paida karen
Deher par is tarah chha jaayen ke sab dekha karen
-Majaz Lakhnawi
क्या समझती हो कि तुमको भी भुला सकता हूँ मैं
(आलम = दुनिया, जगत, संसार)
कौन तुमसे छीन सकता है मुझे क्या वहम है
खुद जुलेखा से भी तो दामन बचा सकता हूँ मैं
दिल मैं तुम पैदा करो पहले मेरी सी जुर्रतें
और फिर देखो कि तुमको क्या बना सकता हूँ मैं
दफ़न कर सकता हूँ सीने मैं तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफसाना बना सकता हूँ मैं
मैं कसम खाता हूं अपने नुत्क़ के एजाज़ की
तुमको बज़्म-ए-माह-ओ-अंजुम में बिठा सकता हूं मैं
(नुत्क़ = शब्द, वाणी, बोली, वाकशक्ति), (एजाज़ = चमत्कार, करामात), (बज़्म-ए-माह-ओ-अंजुम = चाँद सितारों की महफिल)
सर पे रख सकता हूं ताज-ए-किश्वर-ए-नूरानियाँ
महफ़िल-ए-खुरशीद को नीचा दिखा सकता हूं मैं
(ताज-ए-किश्वर-ए-नूरानियाँ = प्रकाश के देश का ताज), (महफ़िल-ए-खुरशीद = सूरज की महफ़िल)
मैं बहुत सरकश हूँ लेकिन इक तुम्हारे वास्ते
दिल बिछा सकता हूं मैं, आँखें बिछा सकता हूं मैं
(सरकश = उद्दंड, विद्रोही, बाग़ी)
तुम अगर रुठो तो इक तुमको मनाने के लिए
गीत गा सकता हूं मैं, आँसू बहा सकता हूं मैं
जज़्ब है दिल में मिरे दोनों जहाँ का सोज़-ओ-साज़
बरबत-ए-फ़ितरत का हर नग़्मा सुना सकता हूं मैं
तुम समझती हो कि हैं पर्दे बहुत से दरमियाँ
मैं यह कहता हूँ कि हर पर्दा उठा सकता हूँ मैं
तुम कि बन सकती हो हर महफ़िल में फिरदौस-ए-नज़र
मुझ को यह दावा कि हर महफ़िल पे छा सकता हूँ मैं
(फिरदौस-ए-नज़र = नज़रों के लिए स्वर्ग)
आओ मिल कर इन्किलाब-ए-ताज़ातर पैदा करें
दहर पर इस तरह छा जाएँ कि सब देखा करें
(इन्किलाब-ए-ताज़ातर = नई क्रांति), (दहर = ज़माना, समय, युग)
-मजाज़ लखनवी
Apne dil ko dono aalam se utha sakta hoon main
Kya samajhti ho ke tum ko bhi bhula skata hoon main
Kaun tum se cheen sakta hai mujhe, kya waham hai
Khud Zuleikha se bhi to daaman bacaa sakta hoon main
Dil mein tum paida karo pehle meri si jurratein
Aur phir dekho ke tum ko kya banaa sakta hoon main
Dafan kar sakta hoon seene mein tumhare raaz ko
Aur tum chaho to afsana bana sakta hoon main
Main qasam khata hoon apne nutaq ke aijaz ki
Tum ko bazm-e-mah-o-anjum mein baitha sakta hoon main
Sar pe rakh sakta hoon taj-e-kishwar-e-nooraniyan
Mehfil-e-khursheed ko neecha dikha sakta hoon main
Main bahut sarkash hoon lekin ek tumhaare waaste
Dil bicha sakta hoon, aankhen bicha sakta hoon main
Tum agar rootho to ek tumko manaane ke liye
Geet ga sakta hoon main aansu baha sakta hoon main
Jazb hain dil mein dono jahan ka soz-o-saz
Barbat-e-fitrat ka har naghma suna sakta hoon main
Tum samajhti ho ke hain parde bahut se darmiyan
Main ye kehta hoon ke har pardah utha sakta hoon main
Tum ke ban sakti ho har mehfil mein firdaus-e-nazar
Maujh ko ye daawa ke har mehfil pe chah sakta hoon main
Aao mil kar inqalab-e-tazaa-tar paida karen
Deher par is tarah chha jaayen ke sab dekha karen
-Majaz Lakhnawi
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