दर्द अपना लिख ना पाए, ऊँगलियाँ जलती रहीं
रस्मों के पहरे में दिल की, चिट्ठियाँ जलती रहीं
ज़िन्दगी की महफ़िलें सजती रही हर पल मगर
मेरे कमरे में मेरी तन्हाईयाँ जलती रहीं
बारिशों के दिन गुज़ारे गर्मियाँ भी कट गईं
पूछ मत हमसे के कैसे सर्दियाँ जलती रहीं
तुम तो बादल थे हमें तुमसे बड़ी उम्मीद थी
उड़ गये बिन बरसे तुम भी बस्तियाँ जलती रहीं
-मदन पाल
रस्मों के पहरे में दिल की, चिट्ठियाँ जलती रहीं
ज़िन्दगी की महफ़िलें सजती रही हर पल मगर
मेरे कमरे में मेरी तन्हाईयाँ जलती रहीं
बारिशों के दिन गुज़ारे गर्मियाँ भी कट गईं
पूछ मत हमसे के कैसे सर्दियाँ जलती रहीं
तुम तो बादल थे हमें तुमसे बड़ी उम्मीद थी
उड़ गये बिन बरसे तुम भी बस्तियाँ जलती रहीं
-मदन पाल
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