रोऊँ मैं सागर के किनारे, सागर हँसी उड़ाए
क्या जानें ये चंचल लहरें, मैं हूँ आग छुपाए
मैं भी इतना डूब चुका हूँ, क्या तेरी गहराई
काहे होड़ लगाए मो से, काहे होड़ लगाए
तुझ में डूबे चाँद मगर इक चाँद ने मुझे डुबाया
मेरा सब कुछ लूट के ले गई, चाँदनी रात की माया
अरमानों की चिता सजाकर मैंने आग लगाई
अब क्या आग बुझाए मेरी, अब क्या आग बुझाए
क्या जानें ये चंचल लहरें, मैं हूँ आग छुपाए
मैं भी इतना डूब चुका हूँ, क्या तेरी गहराई
काहे होड़ लगाए मो से, काहे होड़ लगाए
तुझ में डूबे चाँद मगर इक चाँद ने मुझे डुबाया
मेरा सब कुछ लूट के ले गई, चाँदनी रात की माया
अरमानों की चिता सजाकर मैंने आग लगाई
अब क्या आग बुझाए मेरी, अब क्या आग बुझाए
-शैलेन्द्र
Ro un mein saagar ke kinaare, saagar hansi udaaye
Kya jaanen ye chanchal laharen, main hoon aag chhupaae
Main bhi itana doob chuka hoon, kya teri gaharaai
Kaahe hod lagaae mo se, kaahe hod lagaae
Tujh mein doobe chaand magar, ik chaand ne mujhe dubaaya
Mera sab kuchh loot ke le gai, chaandani raat ki maaya
Armaanon ki chita sajaakar mainne aag lagaai
Ab kya aag bujhaae meri, ab kya aag bujhaae
-Shailendra
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