Monday 24 November 2014

Kaun aayega yahan koi na aaya hoga/ कौन आएगा यहाँ, कोई न आया होगा

कौन आएगा यहाँ, कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा

दिल-ए-नादाँ न धड़क, ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क
कोई ख़त ले के पड़ौसी के घर आया होगा

गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो
आँधियों तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा

(दरख़्त = पेड़)

‘कैफ’ परदेस में मत याद करो अपना मकाँ
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा

-कैफ़ भोपाली



इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल
तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा

दिल की क़िस्मत ही में लिक्खा था अँधेरा शायद
वरना मस्जिद का दिया किस ने बुझाया होगा

खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे
चाँद अब उस की गली में उतर आया होगा



Kaun aayega yahan koi na aaya hoga
Mera darwaaza hawaaon ne hilaaya hoga

Dil-e-naadaan na dhadak ae dil-e-naadaan na dhadak
Koi khat leke padosi ke ghar aaya hoga

Gul se lipti huyee titli ko girakar dekho
Aandhiyon tumne darakhton ko giraaya hoga

'Kaif' pardesh mein mat yaad karo apna makaan
Abke baarish ne use tod giraaya hoga

-Kaif Bhopali

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