Saturday 25 April 2015

Dost ban kar bhi nahi.n saath nibhaane waala/ दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभानेवाला

दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभानेवाला
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़मानेवाला

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उससे
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला

(मरासिम = मेल-जोल)

तेरे होते हुए आ जाती थी दुनिया सारी
आज तनहा हूँ तो कोई नहीं आने वाला

मुन्तज़िर किसका हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
कौन आएगा यहाँ कौन है आने वाला

(मुन्तज़िर = प्रतीक्षारत)

-अहमद फ़राज़

इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर :

क्या ख़बर थी जो मेरी जाँ में घुला रहता है
है वही मुझको सर-ए-दार भी लाने वाला

(सर-ए-दार = फाँसी/ सूली पर)

मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला

(ताबीर = परिणाम, फल)

तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला

[(तक़ल्लुफ़ = शिष्टाचार), (इख़लास = दोस्ती, मित्रता)]



Dost ban kar bhi nahi.n saath nibhaane waala
Wahi andaaz hai zaalim kaa zamaane waala

Kya kahe.n kitane maraasim the hamaare us se
Wo jo ik shaKhs hai muu.Nh pher ke jaane waalaa

Tere hote hue aa jaati thi duniya saari
Aaj tanha huu.N to koi nahi.n aane waalaa

Muntazir kis kaa huu.N Tooti hui dahaliiz pe main
Kaun aayegaa yahaa.N kaun hai aane waalaa

-Ahmed Faraz 

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