बात सन 1978 के शुरू की है,उन दिनों मेहदी हसन साहब भारत आये हुए थे। खां साहब तब ग़ज़ल गायकी के चरम शिखर पर थे,लता मंगेशकर भी उनकी दीवानी थी और सारा फिल्म जगत भी।जगजीत जी को ग़ज़ल में महारत हासिल करने की प्रेरणा मेहदी हसन साहब से ही मिली परन्तु उन्हें उनसे मिलने का मौका नहीं मिला था। जगजीत जी कॉलेज के दिनों में खां साहब की मशहूर ग़ज़लें और फ़िल्मी गाने गाया करते थे।
एक शाम अभिनेत्री रीना राय के घर जगजीत सिंह की महफ़िल थी वहां रेखा, संजीव कुमार, विनोद खन्ना आदि और भी फिल्मी जगत की हस्तियां मौजूद थी।
जगजीत सिंह ने गाना शुरू किया उनके साथ तबले पर सरफ़राज़ और वायलिन पर प.भंवर लाल संगत कर रहे थे। जगजीत जी ने महफ़िल में समां बाँध दिया था।
महफ़िल अभी घंटा भर चली थी कि शत्रुघ्न सिन्हा गुलज़ार साब के घर से मेहदी हसन साहब को ले आये। खान साब बाहर आँगन में खड़े होकर जगजीत जी की ग़ज़ल के खत्म होने का इंतज़ार कर रहे है। जगजीत सिंह ने ग़ज़ल खत्म की और मेहदी हसन अंदर आये,जगजीत सिंह अपनी जगह से उठे और बड़े अदब से खां साहब के पैर छुए। मेहदी हसन साहब ने जगजीत सिंह को आलिंगन में लेकर गले को चूम लिया।
अब ऐसा अपनत्व कहाँ।
मनोज कश्यप जी के सौजन्य से
साभार - सुरों के सौदागर
एक शाम अभिनेत्री रीना राय के घर जगजीत सिंह की महफ़िल थी वहां रेखा, संजीव कुमार, विनोद खन्ना आदि और भी फिल्मी जगत की हस्तियां मौजूद थी।
जगजीत सिंह ने गाना शुरू किया उनके साथ तबले पर सरफ़राज़ और वायलिन पर प.भंवर लाल संगत कर रहे थे। जगजीत जी ने महफ़िल में समां बाँध दिया था।
महफ़िल अभी घंटा भर चली थी कि शत्रुघ्न सिन्हा गुलज़ार साब के घर से मेहदी हसन साहब को ले आये। खान साब बाहर आँगन में खड़े होकर जगजीत जी की ग़ज़ल के खत्म होने का इंतज़ार कर रहे है। जगजीत सिंह ने ग़ज़ल खत्म की और मेहदी हसन अंदर आये,जगजीत सिंह अपनी जगह से उठे और बड़े अदब से खां साहब के पैर छुए। मेहदी हसन साहब ने जगजीत सिंह को आलिंगन में लेकर गले को चूम लिया।
अब ऐसा अपनत्व कहाँ।
मनोज कश्यप जी के सौजन्य से
साभार - सुरों के सौदागर
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