Friday 29 August 2014

Baat saaqi ki na taali jaayegi/ बात साक़ी की न टाली जाएगी

बात साक़ी की न टाली जाएगी
कर के तौबा तोड़ डाली जाएगी

देख लेना वो न ख़ाली जाएगी
आह जो दिल से निकाली जाएगी

ग़र यही तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ है अन्दलीब
तू भी गुलशन से निकाली जाएगी

(तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ = आर्तनाद/ दुहाई का ढँग), (अन्दलीब = बुलबुल), (गुलशन = बाग़, बग़ीचा)

आते-आते आएगा उनको ख़याल
जाते-जाते बेख़याली जाएगी

(बेख़याली = असावधानी)

क्यों नहीं मिलती गले से तेग़-ए-नाज़
ईद क्या अब के भी ख़ाली जाएगी

(तेग़-ए-नाज़ = नाज़/अभिमान/ नखरा रूपी तलवार, गर्विता)

-जलील मानिकपुरी


इसी ग़ज़ल के कुछ और अशआर:


वो सँवरते हैं मुझे इस की है फ़िक्र
आरज़ू किस की निकाली जाएगी

दिल लिया पहली नज़र में आप ने
अब अदा कोई न ख़ाली जाएगी

क्या कहूँ दिल तोड़ते हैं किस लिए
आरज़ू शायद निकाली जाएगी

गर्मी-ए-नज़्ज़ारा-बाज़ी का है शौक़
बाग़ से नर्गिस निकाली जाएगी

(नज़्ज़ारा-बाज़ी = ताका-झाँकी, आँखें लड़ाना)

देखते हैं ग़ौर से मेरी शबीह
शायद उस में जान डाली जाएगी

(शबीह = चित्र, तस्वीर, फोटो)

ऐ तमन्ना तुझ को रो लूँ शाम-ए-वस्ल
आज तू दिल से निकाली जाएगी

(शाम-ए-वस्ल = मिलन की शाम)

फ़स्ल-ए-गुल आई जुनूँ उछला 'जलील'
अब तबीअ'त कुछ सँभाली जाएगी

(फ़स्ल-ए-गुल =  बसंत ऋतु, बहार का मौसम)






Baat saaqi ki na taali jaayegi
Karke tauba tod daali jaayegi

Dekh lena wo na khaali jaayegi
Aah jo dil se nikaali jaayegi

Gar yahi tarz-e-fugan hai andaleeb
Tu bhi gulshan se nikaali jaayegi

Aate aate aayega unko khayaal
Jaate jaate bekhayali jaayegi

Kyoon nahin milti gale se tegh-e-naaz
Eid kya ab ke bhi khaali jaayegi

-Jaleel Manikpuri

No comments:

Post a Comment