कभी गुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह,
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह
[(गुंचा = कली), (शबनम = ओस)]
मेरे महबूब मेरे प्यार को इल्ज़ाम न दे,
हिज्र में ईद मनाई है, मुहर्रम की तरह
(हिज्र = बिछोह, जुदाई)
मैंने ख़ुशबू की तरह तुझको किया है महसूस,
दिल ने छेड़ा है तेरी याद को, शबनम की तरह
कैसे हमदर्द हो तुम कैसी मसीहाई है,
दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मरहम की तरह
(नश्तर= शल्य क्रिया/ चीर-फाड़ करने वाला छोटा चाकू)
-राणा सहरी
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
हम भी रोये तो बहुत अपने मुक़द्दर पे लेकिन
साया-ए-शब में बरसती हुई शबनम की तरह
अब तो इस दौर में धोखे के सिवा कुछ भी नहीं
लोग नश्तर भी लगाते हैं तो मरहम की तरह
Kabhi guncha kabhi shola kabhi shabnam kee tarah
Log milte hain badalte huye mausam kee tarah
Mere mehboob mere pyaar ko ilzaam na de
Hijr mein eid manaayee hai moharrum ki tarah
Maine khushboo kee tarah tujhko kiya hai mehsoos
Dil ne chheda hai teri yaad ko shabnam ki tarah
Kaise ham-dard ho tum kaisee masihaayee hai
Dil pe nashtar bhi lagaate ho to marham ki tarah
-Rana Sahri
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह
[(गुंचा = कली), (शबनम = ओस)]
मेरे महबूब मेरे प्यार को इल्ज़ाम न दे,
हिज्र में ईद मनाई है, मुहर्रम की तरह
(हिज्र = बिछोह, जुदाई)
मैंने ख़ुशबू की तरह तुझको किया है महसूस,
दिल ने छेड़ा है तेरी याद को, शबनम की तरह
कैसे हमदर्द हो तुम कैसी मसीहाई है,
दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मरहम की तरह
(नश्तर= शल्य क्रिया/ चीर-फाड़ करने वाला छोटा चाकू)
-राणा सहरी
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
हम भी रोये तो बहुत अपने मुक़द्दर पे लेकिन
साया-ए-शब में बरसती हुई शबनम की तरह
अब तो इस दौर में धोखे के सिवा कुछ भी नहीं
लोग नश्तर भी लगाते हैं तो मरहम की तरह
Live
Two Different Music Compositions
Log milte hain badalte huye mausam kee tarah
Mere mehboob mere pyaar ko ilzaam na de
Hijr mein eid manaayee hai moharrum ki tarah
Maine khushboo kee tarah tujhko kiya hai mehsoos
Dil ne chheda hai teri yaad ko shabnam ki tarah
Kaise ham-dard ho tum kaisee masihaayee hai
Dil pe nashtar bhi lagaate ho to marham ki tarah
-Rana Sahri
Bahut Bahut Khoobsurat Ghazal
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ReplyDeleteYou are absolutely right
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