फिर उसी राहगुज़र पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर शायद
(राहगुज़र = रास्ता, मार्ग सड़क)
जान-पहचान से भी क्या होगा,
फिर भी ऐ दोस्त गौर कर शायद
मुंतज़िर जिनके हम रहे उनको,
मिल गए और हमसफ़र शायद
[(मुंतज़िर = प्रतीक्षारत), (हमसफ़र = सहयात्री, सफ़र में साथ देने वाला)]
जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं 'फ़राज़'
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद
-अहमद फ़राज़
पूरी ग़ज़ल यहाँ पढ़ें : बज़्म-ए-अदब
Phir usi raahguzar par shaayad
hum kabhi mil sakein magar shaayad
Jaan pehchaan se bhi kya hoga
phir bhi ai dost gaur kar shaayad
Muntazir jinke hum rahe unko
mil gaye aur humsafar shaayad
Jo bhi bichhde hain kab mile hain 'Faraz'
phir bhi tu intizaar kar shaayad
-Ahmed Faraz
हम कभी मिल सकें मगर शायद
(राहगुज़र = रास्ता, मार्ग सड़क)
जान-पहचान से भी क्या होगा,
फिर भी ऐ दोस्त गौर कर शायद
मुंतज़िर जिनके हम रहे उनको,
मिल गए और हमसफ़र शायद
[(मुंतज़िर = प्रतीक्षारत), (हमसफ़र = सहयात्री, सफ़र में साथ देने वाला)]
जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं 'फ़राज़'
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद
-अहमद फ़राज़
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Phir usi raahguzar par shaayad
hum kabhi mil sakein magar shaayad
Jaan pehchaan se bhi kya hoga
phir bhi ai dost gaur kar shaayad
Muntazir jinke hum rahe unko
mil gaye aur humsafar shaayad
Jo bhi bichhde hain kab mile hain 'Faraz'
phir bhi tu intizaar kar shaayad
-Ahmed Faraz
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