झुलासाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
-अटल विहारी वाजपेयी
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
-अटल विहारी वाजपेयी
jhulsaata jeth maas
sharad chaandni udaas
siski bharte saawan ka
antarghat reet gaya
ek baras beet gaya
seekachoN meiN simTa jag
kintu vikal pRaaN wihaG
dharti se ambar tak
gooNJ mukti geet gaaya
ek baras beet gaya
path nihaarte nayan
ginte din, pal chHin
lauT kabhi aayega
man ka jo meet gaya
ek baras beet gaya
-Atal Bihari Vajpayee
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