गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं, काटों से भी ज़ीनत होती है
जीने के लिए इस दुनिया में ग़म की भी ज़रूरत होती है
(गुलशन = बाग़, बगीचा), (फ़क़त = केवल, मात्र, सिर्फ़), (ज़ीनत = शोभा, श्रृंगार, सजावट)
ऐ वाइज़-ऐ-नादाँ करता है तू एक क़यामत का चर्चा
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं यहाँ रोज़ क़यामत होती है
(वाइज़-ऐ-नादाँ = नासमझ धर्मोपदेशक)
वो पुर्सिश-ऐ-ग़म को आये हैं कुछ कह न सकूँ चुप रह न सकूँ
ख़ामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दूँ तो शिकायत होती है
(पुर्सिश-ऐ-ग़म = दुःख/ तकलीफ की पूछताछ)
करना ही पड़ेगा ज़ब्त-ऐ-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आँसू
फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ से ऐ नादाँ तौहीन-ऐ-मोहब्बत होती है
(ज़ब्त-ऐ-अलम = दुःख/ कष्ट प्रकट न होने देना), (फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ = विनती और आर्तनाद/ दुहाई), (नादाँ = नासमझ), (तौहीन-ऐ-मोहब्बत) = मोहब्बत का अपमान/ अनादर/ तिरस्कार)
जो आके रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क नहीं है पानी है
जो अश्क न छलके आँखों से उस अश्क की क़ीमत होती है
-सबा अफ़गानी
Gulshan ki faqat phoolon se nahin kaaton se bhi zeenat hoti hai
jeene ke liye is duniya mein gham ki bhi zaroorat hoti hai
Ae waaiz-e-naadan karta hai tu ek qayamat ka charcha
yahan roz nigahen milti hain yahan roz qayamat hoti hai
Wo pursish-e-gham ko ayae hain kuch keh na sakoon chup reh na sakoon
khaamosh rahoon to mushkil hai keh doon to shikaayat hoti hai
Karna hi padega jabt-e-alam peene hi padenge ye aansoo
fariyaad-o-fugaan se aey naadaan tauheen-e-mohabbat hoti hai
Jo aake ruke daaman pe ‘Saba’ wo ashk nahin hai paani hai
jo ashk na chhalke aankhon se us ashk ki keemat hoti hai
-Saba Afghani
जीने के लिए इस दुनिया में ग़म की भी ज़रूरत होती है
(गुलशन = बाग़, बगीचा), (फ़क़त = केवल, मात्र, सिर्फ़), (ज़ीनत = शोभा, श्रृंगार, सजावट)
ऐ वाइज़-ऐ-नादाँ करता है तू एक क़यामत का चर्चा
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं यहाँ रोज़ क़यामत होती है
(वाइज़-ऐ-नादाँ = नासमझ धर्मोपदेशक)
वो पुर्सिश-ऐ-ग़म को आये हैं कुछ कह न सकूँ चुप रह न सकूँ
ख़ामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दूँ तो शिकायत होती है
(पुर्सिश-ऐ-ग़म = दुःख/ तकलीफ की पूछताछ)
करना ही पड़ेगा ज़ब्त-ऐ-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आँसू
फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ से ऐ नादाँ तौहीन-ऐ-मोहब्बत होती है
(ज़ब्त-ऐ-अलम = दुःख/ कष्ट प्रकट न होने देना), (फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ = विनती और आर्तनाद/ दुहाई), (नादाँ = नासमझ), (तौहीन-ऐ-मोहब्बत) = मोहब्बत का अपमान/ अनादर/ तिरस्कार)
जो आके रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क नहीं है पानी है
जो अश्क न छलके आँखों से उस अश्क की क़ीमत होती है
-सबा अफ़गानी
Gulshan ki faqat phoolon se nahin kaaton se bhi zeenat hoti hai
jeene ke liye is duniya mein gham ki bhi zaroorat hoti hai
Ae waaiz-e-naadan karta hai tu ek qayamat ka charcha
yahan roz nigahen milti hain yahan roz qayamat hoti hai
Wo pursish-e-gham ko ayae hain kuch keh na sakoon chup reh na sakoon
khaamosh rahoon to mushkil hai keh doon to shikaayat hoti hai
Karna hi padega jabt-e-alam peene hi padenge ye aansoo
fariyaad-o-fugaan se aey naadaan tauheen-e-mohabbat hoti hai
Jo aake ruke daaman pe ‘Saba’ wo ashk nahin hai paani hai
jo ashk na chhalke aankhon se us ashk ki keemat hoti hai
-Saba Afghani
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