घर से हम निकले थे मस्जिद की तरफ़ जाने को
रिंद बहका के हमें ले गये मैख़ाने को
(रिंद = शराबी, मनमौजी, स्वच्छंद, मस्त)
ये ज़बाँ चलती है नासेह के छुरी चलती है
ज़िबह करने मुझे आया है के समझाने को
(नासेह = धर्मोपदेशक, नसीहत या उपदेश देने वाला), (ज़िबह = वध करना)
आज कुछ और भी पी लूँ के सुना है मैंने
आते हैं हज़रत-ए-वाइज़ मेरे समझाने को
(वाइज़ = अच्छी बातों की नसीहत या शिक्षा देने वाला)
हट गई आरिज़-ए-रौशन से तुम्हारे जो नक़ाब
रात भर शम्मा से नफ़रत रही दीवाने को
(आरिज़ = कपोल, गाल)
-अमीर मीनाई
Ghar Se Hum Nikle The Masjid Ki Taraf Jaane Ko
Rind Behkaa ke Hame Le Gaye Maikhaane Ko
Yeh JabaaN Chalti Hai Naaseh Ke Churi Chalti Hai
Zibah Karne Mujhe Ayaa Hai Ke Samjhane Ko
Aaj Kuch Aur Bhi Pi LuN Ke Suna Hai Maine
Aate HaiN Hazrat-e-Waiz Mere Samjhane Ko
Hat Gayi Ariz-e-Roshan Se Tumhare Jo Naqaab
Raat Bhar Shamma Se Nafrat Rahi Deewane Ko
-Amir Meenai
रिंद बहका के हमें ले गये मैख़ाने को
(रिंद = शराबी, मनमौजी, स्वच्छंद, मस्त)
ये ज़बाँ चलती है नासेह के छुरी चलती है
ज़िबह करने मुझे आया है के समझाने को
(नासेह = धर्मोपदेशक, नसीहत या उपदेश देने वाला), (ज़िबह = वध करना)
आज कुछ और भी पी लूँ के सुना है मैंने
आते हैं हज़रत-ए-वाइज़ मेरे समझाने को
(वाइज़ = अच्छी बातों की नसीहत या शिक्षा देने वाला)
हट गई आरिज़-ए-रौशन से तुम्हारे जो नक़ाब
रात भर शम्मा से नफ़रत रही दीवाने को
(आरिज़ = कपोल, गाल)
-अमीर मीनाई
Ghar Se Hum Nikle The Masjid Ki Taraf Jaane Ko
Rind Behkaa ke Hame Le Gaye Maikhaane Ko
Yeh JabaaN Chalti Hai Naaseh Ke Churi Chalti Hai
Zibah Karne Mujhe Ayaa Hai Ke Samjhane Ko
Aaj Kuch Aur Bhi Pi LuN Ke Suna Hai Maine
Aate HaiN Hazrat-e-Waiz Mere Samjhane Ko
Hat Gayi Ariz-e-Roshan Se Tumhare Jo Naqaab
Raat Bhar Shamma Se Nafrat Rahi Deewane Ko
-Amir Meenai
Deepankar ji Poet of this Ghazal is Ameer Minaai.. :)
ReplyDeleteThank you so much ! I have updated it now.
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