ऐ वतन मेरे वतन रूह-ए-रवानी अहरार
ऐ के ज़र्रों में तेरे बू-ए-चमन रंग-ए-बहार
(रूह-ए-रवानी = आत्मा का बहाव, प्रवाह), (अहरार = उदार, दानी), (बू-ए-चमन = बग़ीचे की ख़ुशबू)
रेज़-ए-अल्मास के तेरे ख़स-ओ-ख़ाशाक़ में हैं
हड़्ड़ियाँ अपने बुज़ुर्गों की तेरी ख़ाक में हैं
(रेज़-ए-अल्मास = हीरे के टुकड़े ), (ख़स-ओ-ख़ाशाक़ = सूखी घास और कूड़ा-करकट)
तेरे क़तरों से सुनी पर्वत-ए-दरिया हमने
तेरे ज़र्रों में पढ़ी आयत-ए-सहरा हमने
(आयत-ए-सहरा =
खंदा-ए-गुल की ख़बर तेरी ज़बानी आई
तेरे बाग़ों में हवा खा के जवानी आई
(खंदा-ए-गुल = गुलाब की मुस्कराहट, फूल का खिलना)
तुझ से मुँह मोड़ के मुँह अपना दिखाएँगे कहाँ
घर जो छोड़ेंगे तो फिर छाँव निछाएँगे कहाँ
बज़्म-ए-अग़यार में आराम ये पायेंगे कहाँ
तुझ से हम रूठ के जायेंगे तो जायेंगे कहाँ
(बज़्म-ए-अग़यार = विरोधियों की महफ़िल)
-जोश मलीहाबादी
Ae watan mere watan rooh-e-rawaani aheraar
Ae ke zarroo mein tere boo-e-chanman rang-e-bahaar
Rez-e-almaas ke tere khas-o-khaashaaq mein hai
Haddiyaan apne buzurgon ki teri khaak mein hai
Tujhse munh modke munh apna dikhaayenge kahan
Ghar jo chodhenge to fir chaanw nichaayenge kahan
Bazm-e-agyaar mein aaraam ye paayenge kahan
Tujhse hum ruthke jaayenge to jaayenge kahan
-Josh Malihabadi
ऐ के ज़र्रों में तेरे बू-ए-चमन रंग-ए-बहार
(रूह-ए-रवानी = आत्मा का बहाव, प्रवाह), (अहरार = उदार, दानी), (बू-ए-चमन = बग़ीचे की ख़ुशबू)
रेज़-ए-अल्मास के तेरे ख़स-ओ-ख़ाशाक़ में हैं
हड़्ड़ियाँ अपने बुज़ुर्गों की तेरी ख़ाक में हैं
(रेज़-ए-अल्मास = हीरे के टुकड़े ), (ख़स-ओ-ख़ाशाक़ = सूखी घास और कूड़ा-करकट)
तेरे क़तरों से सुनी पर्वत-ए-दरिया हमने
तेरे ज़र्रों में पढ़ी आयत-ए-सहरा हमने
(आयत-ए-सहरा =
खंदा-ए-गुल की ख़बर तेरी ज़बानी आई
तेरे बाग़ों में हवा खा के जवानी आई
(खंदा-ए-गुल = गुलाब की मुस्कराहट, फूल का खिलना)
तुझ से मुँह मोड़ के मुँह अपना दिखाएँगे कहाँ
घर जो छोड़ेंगे तो फिर छाँव निछाएँगे कहाँ
बज़्म-ए-अग़यार में आराम ये पायेंगे कहाँ
तुझ से हम रूठ के जायेंगे तो जायेंगे कहाँ
(बज़्म-ए-अग़यार = विरोधियों की महफ़िल)
-जोश मलीहाबादी
Ae watan mere watan rooh-e-rawaani aheraar
Ae ke zarroo mein tere boo-e-chanman rang-e-bahaar
Rez-e-almaas ke tere khas-o-khaashaaq mein hai
Haddiyaan apne buzurgon ki teri khaak mein hai
Tujhse munh modke munh apna dikhaayenge kahan
Ghar jo chodhenge to fir chaanw nichaayenge kahan
Bazm-e-agyaar mein aaraam ye paayenge kahan
Tujhse hum ruthke jaayenge to jaayenge kahan
-Josh Malihabadi
No comments:
Post a Comment