आँखों का था क़ुसूर न दिल का क़ुसूर था
आया जो मेरे सामने मेरा ग़ुरूर था
वो थे न मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था
आता न था नज़र को नज़र का क़ुसूर था
लगते ही ठेस टूट गया साज़-ए-आरज़ू
मिलते ही आँख शीशा-ए-दिल चूर-चूर था
(साज़-ए-आरज़ू = अभिलाषा रूपी वाद्य यंत्र)
ऐसा कहाँ बहार में रंगीनियों का जोश
शामिल किसी का ख़ून-ए-तमन्ना ज़रूर था
(ख़ून-ए-तमन्ना = आकांक्षा/ इच्छा का ख़ून)
साक़ी की चश्म-ए-मस्त का क्या कीजिए बयान
इतना सुरूर था कि मुझे भी सुरूर था
(चश्म-ए-मस्त = नशीली आँख)
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
तारीक़ मिस्ल-ए-आह जो आँखों का नूर था
क्या सुबह से ही शाम-ए-बला का ज़हूर था
(मिस्ल-ए-आह = आह के समान/ तुल्य)
कोई तो दर्दमंद-ए-दिल-ए-नासुबूर था
माना कि तुम न थे, कोई तुम-सा ज़रूर था
(दर्दमंद-ए-दिल-ए-नासुबूर = अधीर हृदय का हितैषी)
पलटी जो रास्ते ही से ऐ आह-ए-नामुराद
ये तो बता के बात-ए-असर कितनी दूर था
जिस दिल को तुमने लुत्फ़ से अपना बना लिया
उस दिल में इक छुपा हुआ नश्तर ज़रूर था
(नश्तर= शल्य क्रिया/ चीर-फाड़ करने वाला छोटा चाकू)
देखा था कल ‘जिगर’ को सरे-राह-ए-मैकदा
इस दर्ज़ा पी गया था कि नश्शे में चूर था
(सरे-राह-ए-मैकदा = मधुशाला के रास्ते में)
-जिगर मुरादाबादी
Aankhon ka tha kasoor na dil ka kasoor tha
Aaya jo mere samne mera ghuroor tha
Wo the na mujh se door na main un se door tha
Aata na tha nazar to nazar ka kasoor tha
Lagte hi thes toot gayaa saaz-e-aarzoo
Milte hi aankh sheesha-e-dil choor choor tha
Aisa kahan bahaar mein rangeeniyon ka josh
Shaamil kisi ka khoon-e-tamanna zaroor tha
Saaqi ki chashm-e-mast ka keejiye bayaan
Itna suroor tha ki mujhe bhi suroor tha
-Jigar Moradabadi
Some more couplets from this ghazal:
Taareek misl-e-aah jo aankhon ka noor tha
Kya subh se hi shaam-e-bala ka zuhoor tha
Koi to dard mand dil-e-na suboor tha
Maana ke tum na the koi tum sa zaroor tha
Palti jo raaste hi se ae aah-e-naamuraad
Ye to bataa ke baab-e-asar kitni door tha
Jis dil ko tum ne lutf se apna bana liya
Us dil mein ek chupa hua nishtar zaroor tha
Dekha tha kal 'Jigar' ko sar-e-raah-e-maikada
Is darja pi gaya tha ke nashe mein choor tha
आया जो मेरे सामने मेरा ग़ुरूर था
वो थे न मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था
आता न था नज़र को नज़र का क़ुसूर था
लगते ही ठेस टूट गया साज़-ए-आरज़ू
मिलते ही आँख शीशा-ए-दिल चूर-चूर था
(साज़-ए-आरज़ू = अभिलाषा रूपी वाद्य यंत्र)
ऐसा कहाँ बहार में रंगीनियों का जोश
शामिल किसी का ख़ून-ए-तमन्ना ज़रूर था
(ख़ून-ए-तमन्ना = आकांक्षा/ इच्छा का ख़ून)
साक़ी की चश्म-ए-मस्त का क्या कीजिए बयान
इतना सुरूर था कि मुझे भी सुरूर था
(चश्म-ए-मस्त = नशीली आँख)
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
तारीक़ मिस्ल-ए-आह जो आँखों का नूर था
क्या सुबह से ही शाम-ए-बला का ज़हूर था
(मिस्ल-ए-आह = आह के समान/ तुल्य)
कोई तो दर्दमंद-ए-दिल-ए-नासुबूर था
माना कि तुम न थे, कोई तुम-सा ज़रूर था
(दर्दमंद-ए-दिल-ए-नासुबूर = अधीर हृदय का हितैषी)
पलटी जो रास्ते ही से ऐ आह-ए-नामुराद
ये तो बता के बात-ए-असर कितनी दूर था
जिस दिल को तुमने लुत्फ़ से अपना बना लिया
उस दिल में इक छुपा हुआ नश्तर ज़रूर था
(नश्तर= शल्य क्रिया/ चीर-फाड़ करने वाला छोटा चाकू)
देखा था कल ‘जिगर’ को सरे-राह-ए-मैकदा
इस दर्ज़ा पी गया था कि नश्शे में चूर था
(सरे-राह-ए-मैकदा = मधुशाला के रास्ते में)
-जिगर मुरादाबादी
Aankhon ka tha kasoor na dil ka kasoor tha
Aaya jo mere samne mera ghuroor tha
Wo the na mujh se door na main un se door tha
Aata na tha nazar to nazar ka kasoor tha
Lagte hi thes toot gayaa saaz-e-aarzoo
Milte hi aankh sheesha-e-dil choor choor tha
Aisa kahan bahaar mein rangeeniyon ka josh
Shaamil kisi ka khoon-e-tamanna zaroor tha
Saaqi ki chashm-e-mast ka keejiye bayaan
Itna suroor tha ki mujhe bhi suroor tha
-Jigar Moradabadi
Some more couplets from this ghazal:
Taareek misl-e-aah jo aankhon ka noor tha
Kya subh se hi shaam-e-bala ka zuhoor tha
Koi to dard mand dil-e-na suboor tha
Maana ke tum na the koi tum sa zaroor tha
Palti jo raaste hi se ae aah-e-naamuraad
Ye to bataa ke baab-e-asar kitni door tha
Jis dil ko tum ne lutf se apna bana liya
Us dil mein ek chupa hua nishtar zaroor tha
Dekha tha kal 'Jigar' ko sar-e-raah-e-maikada
Is darja pi gaya tha ke nashe mein choor tha
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