बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार
बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
उस की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी
(माइल = आकर्षित, आसक्त)
चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी
(चश्म-ए-क़ातिल = क़ातिल की आँख, यहाँ तात्पर्य प्रेमिका की आँखों से है)
-बहादुर शाह ज़फ़र
पूरी ग़ज़ल यहाँ पढ़ें : बज़्म-ए-अदब
Baat karni mujhe mushkil kabhi aisi to na thi
Jaisi ab hai teri mahfil kabhi aisi to na thi
Le gaya chheen ke kaun aaj tera sabr-o-qaraar
Beqaraari tujhe ae dil kabhi aisi to na thi
Uski aankhon ne khuda jaane kiya kya jaadoo
Ke tabiyat meri maayil kabhi aisi to na thi
Chasm-e-qaatil meri dushman thi hamesha lekin
Jaisi ab ho gayi qaatil kabhi aisi to na thi
-Bahadur Shah Zafar
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार
बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
उस की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी
(माइल = आकर्षित, आसक्त)
चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी
(चश्म-ए-क़ातिल = क़ातिल की आँख, यहाँ तात्पर्य प्रेमिका की आँखों से है)
-बहादुर शाह ज़फ़र
पूरी ग़ज़ल यहाँ पढ़ें : बज़्म-ए-अदब
Baat karni mujhe mushkil kabhi aisi to na thi
Jaisi ab hai teri mahfil kabhi aisi to na thi
Le gaya chheen ke kaun aaj tera sabr-o-qaraar
Beqaraari tujhe ae dil kabhi aisi to na thi
Uski aankhon ne khuda jaane kiya kya jaadoo
Ke tabiyat meri maayil kabhi aisi to na thi
Chasm-e-qaatil meri dushman thi hamesha lekin
Jaisi ab ho gayi qaatil kabhi aisi to na thi
-Bahadur Shah Zafar
बहुत ख़ूब...
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