इश्क़ मुझको नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही
(वहशत = पागलपन, दीवानगी, उन्माद), (शोहरत = प्रसिद्धि)
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही
हम कोई तर्क़-ए-वफ़ा करते हैं
न सही इश्क़ मुसीबत ही सही
(तर्क़-ए-वफ़ा = वफ़ा का त्याग)
-मिर्ज़ा ग़ालिब
Ishq mujhko naheen, wehshat hi sahi
Meri wehshat, teri shohrat hi sahi
Hum bhi dushman to naheen hain apne
Ghair ko tujh se mohabbat hi sahi
Hum koi tarq-e-wafa karte hain
Na sahi ishq, museebat hi sahi
-Mirza Ghalib
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही
(वहशत = पागलपन, दीवानगी, उन्माद), (शोहरत = प्रसिद्धि)
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही
हम कोई तर्क़-ए-वफ़ा करते हैं
न सही इश्क़ मुसीबत ही सही
(तर्क़-ए-वफ़ा = वफ़ा का त्याग)
-मिर्ज़ा ग़ालिब
Ishq mujhko naheen, wehshat hi sahi
Meri wehshat, teri shohrat hi sahi
Hum bhi dushman to naheen hain apne
Ghair ko tujh se mohabbat hi sahi
Hum koi tarq-e-wafa karte hain
Na sahi ishq, museebat hi sahi
-Mirza Ghalib
Thank you
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