खुमार-ए-ग़म है महकती फ़िज़ा में जीते हैं
तेरे ख़याल की आब-ओ-हवा में जीते हैं
(खुमार-ए-ग़म = दुःख का नशा), (फ़िज़ा = वातावरण), (आब-ओ-हवा = जलवायु, हवा-पानी)
बड़े तपाक से मिलते हैं मिलने वाले मुझे
वो मेरे दोस्त हैं तेरी वफ़ा में जीते हैं
(तपाक = गर्मजोशी)
फ़िराक-ए-यार में साँसों को रोके रखते हैं
हर एक लम्हा गुज़रती क़ज़ा में जीते हैं
(फ़िराक-ए-यार = यार की जुदाई), (क़ज़ा = मौत)
ना बात पूरी हुई थी के रात टूट गयी
अधूरे ख़्वाब की आधी सज़ा में जीते हैं
तुम्हारी बातों में कोई मसीहा बसता है
हसीन लबों से बरसती शफ़हा में जीते हैं
(शफ़हा = होंठ से उच्चारित अक्षर)
-गुलज़ार
Khumaar-e-gham hai, mahekti fiza mein jeete hain
Tere khayaal ki aab-o-hawa mein jeete hain
Bade tapaak se milte hain milne waale mujhe
Wo mere dost hain, teri wafa mein jeete hain
Firaaq-e-yaar mein saanson ko roke rakhte hain
Har ek lamha guzarti qaza mein jeete hain
Na baat poori hui thi, ke raat toot gayi
Adhure khwaab ki aadhi saza mein jeete hain
Tumhaari baaton mein koi masiha basta hai
Haseen labon se barasti shafha mein jeete hain
तेरे ख़याल की आब-ओ-हवा में जीते हैं
(खुमार-ए-ग़म = दुःख का नशा), (फ़िज़ा = वातावरण), (आब-ओ-हवा = जलवायु, हवा-पानी)
बड़े तपाक से मिलते हैं मिलने वाले मुझे
वो मेरे दोस्त हैं तेरी वफ़ा में जीते हैं
(तपाक = गर्मजोशी)
फ़िराक-ए-यार में साँसों को रोके रखते हैं
हर एक लम्हा गुज़रती क़ज़ा में जीते हैं
(फ़िराक-ए-यार = यार की जुदाई), (क़ज़ा = मौत)
ना बात पूरी हुई थी के रात टूट गयी
अधूरे ख़्वाब की आधी सज़ा में जीते हैं
तुम्हारी बातों में कोई मसीहा बसता है
हसीन लबों से बरसती शफ़हा में जीते हैं
(शफ़हा = होंठ से उच्चारित अक्षर)
-गुलज़ार
Movie: Leela
Tere khayaal ki aab-o-hawa mein jeete hain
Bade tapaak se milte hain milne waale mujhe
Wo mere dost hain, teri wafa mein jeete hain
Firaaq-e-yaar mein saanson ko roke rakhte hain
Har ek lamha guzarti qaza mein jeete hain
Na baat poori hui thi, ke raat toot gayi
Adhure khwaab ki aadhi saza mein jeete hain
Tumhaari baaton mein koi masiha basta hai
Haseen labon se barasti shafha mein jeete hain
-Gulzar
Bahut hi behtareen ghazal hai.
ReplyDeleteशानदार गुलज़ार साहब
ReplyDeleteवाआह! कितना गहरा और खूबसूरत लिखा है गुलज़ार साहब ने , साथ ही कितना कर्णप्रिय संगीत दिया है और गाया है जगजीत साब ने..उनके जाने के बाद ऐसे तन्हाई ग़म से जोड़ने वाले गीत संगीत से बड़े दूर हो गए हैं..ये ब्लॉग भी बेहद खूबसूरत है..धन्यवाद इसे बनाने और संजोने के लिए..
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