Thursday 29 January 2015

Kyun na ho baam pe wo jalwanuma teesre din / क्यों न हो बाम पे वो जलवानुमा तीसरे दिन

क्यों न हो बाम पे वो जलवानुमा तीसरे दिन
चाँद भी छुपके निकलता है भला तीसरे दिन

(बाम = छत)

ग़र्क़-ए-दरिया-ए-मोहब्बत की नहीं मिलती लाश
वरना डूबा हुआ उभरे है सदा तीसरे दिन

(ग़र्क़-ए-दरिया-ए-मोहब्बत = प्यार के समुन्दर में डूबा हुआ)

तीन दिन चश्म के बीमार का कर अपने इलाज़
होती मालूम है तासीर-ए-दवा तीसरे दिन

उम्र यक हफ़्ता नहीं बाग़ में ऐ गुल मत भूल
रंग बदले है ज़माने की हवा तीसरे दिन

छोड़ मत जुल्फ़ के मारे को तू दरियाँ में अभी
साँप के काटे को देते हैं बहा तीसरे दिन

-नज़ीर अक़बराबादी



इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

क्यूँ न हो बाम पे वो जल्वा-नुमा तीसरे दिन
माह भी छुप के निकलता है दिला तीसरे दिन

(माह = चाँद), (दिला = ऐ दिल!)

हाथ से अब तो क़लम रश्क-ए-मसीहा रख दे
नुस्ख़े बदले हैं जहाँ के हुकमा तीसरे दिन

दिल-ए-बीमार रहे इश्क़ में क्यूँ कर सरसब्ज़
ख़ाक़ से दाने को है नश्व-ओ-नुमां तीसरे दिन

(सरसब्ज़ हरा-भरा), (नश्व-ओ-नुमां = वृद्धि, विकास)

छोड़ मत ज़ुल्फ़ के मारे को तू दरिया में हनूज़
साँप के काटे को देते हैं बहा तीसरे दिन

(हनूज़ = अभी तक, इस समय)

अब ज़रा चश्म के बीमार का कर अपने इलाज
होती मालूम है तासीर-ए-दवा तीसरे दिन

लोग कहते हैं कि हैं फूल तिरे कुश्ते के
मेहँदी हाथों में तू क़ातिल लगा तीसरे दिन

चार हर्फ़ उस बुत-ए-पुर-ख़ूँ के उपर भेज 'नज़ीर'
आप से आप जो हो जाए ख़फ़ा तीसरे दिन




Kyun na ho baam pe wo jalwanuma teesre din
Chaand bhi chup ke niklata hai bhala teesre din

Garq-e-dariya-e-mohabbat ki nahi milti laash
Warna dooba hua ubhre hai sada teesre din

Teen din Chashm ke beemar ka kar apne ilaaz
Hoti maalum hai taaseer-e-dawaa teesre din

Umr yak hafta nahi baag mein ae gul mat bhool
Rang badle hai zamane ki hawa teesre din

Chhor mat zulf ke maare ko tu dariya mein abhi
Saamp ke kaate ko dete hain bahaa teesre din

-Nazeer Akbarabadi 

1 comment:

  1. दिल-ए-बीमार रहे इश्क़ में क्यों सरसब्ज़,
    ख़ाक़ से दाने को है नश्व-ओ-नुमां तीसरे दिन..

    हाथ से अब तो क़लम रश्क-ए-मसीहा रख दे
    नुस्ख़े बदले हैं जहाँ के हुकमा तीसरे दिन..

    लोग कहते है कि है फूल तेरे कुश्ते के,
    मेहँदी हाथों में तू क़ातिल लगा तीसरे दिन..

    चार हर्फ़ उस बुत-ए-पुर-ख़ूँ के उपर भेज 'नज़ीर'
    आप से आप जो हो जाए ख़फ़ा तीसरे दिन..

    ~नज़ीर अक़बराबादी


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