शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फ़रमाता हूँ मैं
रूह बनकर ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शै में किसी शै की कमी पाता हूँ मैं
तेरी महफ़िल तेरे जलवे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं
हाय री मजबूरियाँ, तर्क-ए-मोहब्बत के लिये
मुझको समझाते हैं वो और उनको समझाता हूँ मैं
(तर्क-ए-मोहब्बत = प्रेम का त्याग)
एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ 'जिगर'
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं
(तूफ़ान-ए-हवादिस = हादसों का तूफ़ान)
-जिगर मुरादाबादी
Singer: Vinod Sehgal
रूह बनकर ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शै में किसी शै की कमी पाता हूँ मैं
तेरी महफ़िल तेरे जलवे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं
हाय री मजबूरियाँ, तर्क-ए-मोहब्बत के लिये
मुझको समझाते हैं वो और उनको समझाता हूँ मैं
(तर्क-ए-मोहब्बत = प्रेम का त्याग)
एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ 'जिगर'
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं
(तूफ़ान-ए-हवादिस = हादसों का तूफ़ान)
-जिगर मुरादाबादी
Singer: Vinod Sehgal
No comments:
Post a Comment