कोई ये कह दे गुलशन गुलशन
लाख बलाएँ एक नशेमन
(गुलशन = बग़ीचा), (नशेमन = घोंसला)
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन
(गुलशन = बग़ीचा), (नशेमन = घोंसला)
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन
आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रोशन
(हिज्र = बिछोह, जुदाई)
हिज्र की रात और इतनी रोशन
(हिज्र = बिछोह, जुदाई)
काँटों का भी कुछ हक़ है आखि़र
कौन बचाए अपना दामन
-जिगर मुरादाबादी
पूरी ग़ज़ल यहाँ पढ़ें : बज़्म-ए-अदब
Koi ye keh de gulshan gulshan
Laakh balaayen ek nasheman
Phool khile hain gulshan gulshan
Lekin apna apna daaman
Aaj na jaane raaz ye kya hai
Hijr ki raat aur itni raushan
Kaanton ka bhi kuch haq hai aakhir
Kaun bachaaye apna daaman
-Jigar Moradabadi
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