Tuesday 9 February 2016

Ghata bhi chaayi hai/ घटा भी छाई है फ़स्ल-ए-बहार है साक़ी

घटा भी छाई है फ़स्ल-ए-बहार है साक़ी
अब इसके बाद तुझे इख़्तियार है साक़ी

(फ़स्ल-ए-बहार= वसंत ऋतु, बहार का मौसम), (इख़्तियार = अधिकार, काबू, प्रभुत्व)

तुझे भी याद वो कौल-ओ-क़रार है साक़ी
के मेरी प्यास अभी तक उधार है साक़ी

(कौल-ओ-क़रार = आपस में प्रतिज्ञा करना, पारस्परिक प्रतिज्ञा और वचन)

तेरे गले में जो फूलों का हार है साक़ी
यही तो हासिल-ए-फ़स्ल-ए-बहार है साक़ी

ये ऊंदी ऊंदी घटाएं ये सुरमई बादल
अब इंतज़ार बहुत नागवार है साक़ी

पड़ा भी रहने दे टूटे हुए पियालों को
तेरे इताब की इक यादगार है साक़ी

(इताब = क्रोध, गुस्सा)

मैं दूसरों की तरह तुझसे बदगुमाँ नहीं
तेरे कहे का मुझे एतबार है साक़ी

(बदगुमाँ = संदेह करने वाला)

-नामालूम

https://www.youtube.com/watch?v=uo8dahDu72U&feature=youtu.be


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