वो दे रहा है दिलासे उम्र भर के मुझे
बिछड़ न जाए कहीं फिर उदास करके मुझे
जहां न तू, न तेरी याद के कदम होंगे
डरा रहे हैं वही मरहले सफ़र के मुझे
(मरहले = ठिकाने, मंज़िलें, पड़ाव)
हवा-ए-दश्त मुझे अब तो अजनबी न समझ
के अब तो भूल गए रास्ते भी घर के मुझे
(हवा-ए-दश्त = जंगल की हवा)
दिल-ए-तबाह तेरे ग़म को टालने के लिए
सुना रहा है फ़साने इधर उधर के मुझे
(दिल-ए-तबाह = बर्बाद दिल)
कुछ इसलिए भी मैं उससे बिछड़ गया 'मोहसिन'
वो दूर-दूर से देखे, ठहर-ठहर के मुझे
-मोहसिन नक़वी
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
ये चंद अश्क भी तेरे हैं शाम-ए-ग़म लेकिन
उलझाने लगे हैं अभी ख़द्द-ओ-ख़ाल शहर के मुझे
(ख़द्द-ओ-ख़ाल = चेहरे, बनावट, विशेषतायें)
क़बा-ए-ज़ख्म बदन पर सजा के निकला हूँ
वो अब मिला तो देखेगा आँख भर के मुझे
(क़बा-ए-ज़ख्म = ज़ख्मों का लिबास)
https://youtu.be/nDDAx5MVTKw
Wo de raha hai dilaase umra bhar ke mujhe
Bichad na jaye kahien phir udaas kar ke mujhe
Jahan na tu na teri yaad ke kadam honge
Daraa rahe hain wahi marhale safar ke mujhe
Hawaa-e-dasht mujhe ab to ajnabi na samajh
Ke ab to bhool gaye raste bhi ghar ke mujhe
Dil-e-tabaah tere gham ko taalne ke liye
Suna raha hai fasane idher udhar ke mujhe
Kuch is liye bhi main us se bichad gaya 'Mohsin'
Wo door door se dekhe thahar thahar ke mujhe
-Mohsin Naqvi
बिछड़ न जाए कहीं फिर उदास करके मुझे
जहां न तू, न तेरी याद के कदम होंगे
डरा रहे हैं वही मरहले सफ़र के मुझे
(मरहले = ठिकाने, मंज़िलें, पड़ाव)
हवा-ए-दश्त मुझे अब तो अजनबी न समझ
के अब तो भूल गए रास्ते भी घर के मुझे
(हवा-ए-दश्त = जंगल की हवा)
दिल-ए-तबाह तेरे ग़म को टालने के लिए
सुना रहा है फ़साने इधर उधर के मुझे
(दिल-ए-तबाह = बर्बाद दिल)
कुछ इसलिए भी मैं उससे बिछड़ गया 'मोहसिन'
वो दूर-दूर से देखे, ठहर-ठहर के मुझे
-मोहसिन नक़वी
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
ये चंद अश्क भी तेरे हैं शाम-ए-ग़म लेकिन
उलझाने लगे हैं अभी ख़द्द-ओ-ख़ाल शहर के मुझे
(ख़द्द-ओ-ख़ाल = चेहरे, बनावट, विशेषतायें)
क़बा-ए-ज़ख्म बदन पर सजा के निकला हूँ
वो अब मिला तो देखेगा आँख भर के मुझे
(क़बा-ए-ज़ख्म = ज़ख्मों का लिबास)
https://youtu.be/nDDAx5MVTKw
Wo de raha hai dilaase umra bhar ke mujhe
Bichad na jaye kahien phir udaas kar ke mujhe
Jahan na tu na teri yaad ke kadam honge
Daraa rahe hain wahi marhale safar ke mujhe
Hawaa-e-dasht mujhe ab to ajnabi na samajh
Ke ab to bhool gaye raste bhi ghar ke mujhe
Dil-e-tabaah tere gham ko taalne ke liye
Suna raha hai fasane idher udhar ke mujhe
Kuch is liye bhi main us se bichad gaya 'Mohsin'
Wo door door se dekhe thahar thahar ke mujhe
-Mohsin Naqvi
बेहतरीन
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