ये किस ख़लिश ने फिर इस दिल में आशियाना किया
फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ायेबाना किया
(ख़लिश = चुभन, वेदना), (सुख़न = बात-चीत, संवाद, वचन), (ग़ायेबाना = पीठ पीछे, अनुपस्थिति में)
ग़म-ए-जहाँ हो, रुख़-ए-यार हो के दस्त-ए-उदू
सुलूक जिस से किया हमने आशिक़ाना किया
(ग़म-ए-जहाँ = दुनिया के दुःख), (दस्त-ए-उदू = दुश्मन का हाथ), (सुलूक = व्यवहार)
थे ख़ाक-ए-राह भी हम लोग क़हर-ए-तूफ़ाँ भी
सहा तो क्या न सहा और किया तो क्या न किया
(ख़ाक-ए-राह = रास्ते की धूल), (क़हर-ए-तूफ़ाँ = तूफ़ान का क़हर/ क्रोध/कोप)
ख़ुशा के आज हर इक मुद्दई के लब पर है
वो राज़ जिस ने हमें राँदा-ए-ज़माना किया
(ख़ुशा = अहो, क्या ख़ूब, वाह वाह), (मुद्दई = दावा करने वाला, वादी), (लब = होंठ), (राँदा = निकाला हुआ, त्यक्त, बहिष्कृत), (राँदा-ए-ज़माना = दुनिया/ समाज से बहिष्कृत)
वो हीलागर जो वफ़ाजू भी है जफ़ाख़ू भी
किया भी 'फैज़' तो किस बुत से दोस्ताना किया
(हीलागर = चालाक, फ़रेबी, बहानेबाज़), (वफ़ाजू = वफ़ा करने वाला), (जफ़ाख़ू = स्वाभाव से विश्वासघाती, आदतन बेवफ़ा)
-फैज़ अहमद फैज़
Ye kis khalish ne phir is dil mein aashiyana kiya
Phir aaj kis ne sukhan hum se gayebana kiya
Gham-e-jahan ho, rukh-e-yaar ho ke dast-e-udu
Salook jis se kiya hum ne aashiqana kiya
The khak-e-raah bhi hum log qahar-e-tufan bhi
Sahaa to kya na sahaa aur kiya to kya na kiya
Khusha ke aaj har ik muddai ke lab par hai
Wo raaz jis ne hamen raanda-e-zamana kiya
Wo heelagar jo Wafaaju bhi hai jafaakhu bhi
Kiya bhi 'Faiz' to kis but se dostana kiya
-Faiz Ahmed Faiz
फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ायेबाना किया
(ख़लिश = चुभन, वेदना), (सुख़न = बात-चीत, संवाद, वचन), (ग़ायेबाना = पीठ पीछे, अनुपस्थिति में)
ग़म-ए-जहाँ हो, रुख़-ए-यार हो के दस्त-ए-उदू
सुलूक जिस से किया हमने आशिक़ाना किया
(ग़म-ए-जहाँ = दुनिया के दुःख), (दस्त-ए-उदू = दुश्मन का हाथ), (सुलूक = व्यवहार)
थे ख़ाक-ए-राह भी हम लोग क़हर-ए-तूफ़ाँ भी
सहा तो क्या न सहा और किया तो क्या न किया
(ख़ाक-ए-राह = रास्ते की धूल), (क़हर-ए-तूफ़ाँ = तूफ़ान का क़हर/ क्रोध/कोप)
ख़ुशा के आज हर इक मुद्दई के लब पर है
वो राज़ जिस ने हमें राँदा-ए-ज़माना किया
(ख़ुशा = अहो, क्या ख़ूब, वाह वाह), (मुद्दई = दावा करने वाला, वादी), (लब = होंठ), (राँदा = निकाला हुआ, त्यक्त, बहिष्कृत), (राँदा-ए-ज़माना = दुनिया/ समाज से बहिष्कृत)
वो हीलागर जो वफ़ाजू भी है जफ़ाख़ू भी
किया भी 'फैज़' तो किस बुत से दोस्ताना किया
(हीलागर = चालाक, फ़रेबी, बहानेबाज़), (वफ़ाजू = वफ़ा करने वाला), (जफ़ाख़ू = स्वाभाव से विश्वासघाती, आदतन बेवफ़ा)
-फैज़ अहमद फैज़
1978 Live in Kenya
Ye kis khalish ne phir is dil mein aashiyana kiya
Phir aaj kis ne sukhan hum se gayebana kiya
Gham-e-jahan ho, rukh-e-yaar ho ke dast-e-udu
Salook jis se kiya hum ne aashiqana kiya
The khak-e-raah bhi hum log qahar-e-tufan bhi
Sahaa to kya na sahaa aur kiya to kya na kiya
Khusha ke aaj har ik muddai ke lab par hai
Wo raaz jis ne hamen raanda-e-zamana kiya
Wo heelagar jo Wafaaju bhi hai jafaakhu bhi
Kiya bhi 'Faiz' to kis but se dostana kiya
-Faiz Ahmed Faiz
My favourite Ghazal with Melodious voice of Jagjitsing.
ReplyDeleteFrom:-Gopalkrishna Gadge
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