जिस सिम्त भी देखूँ नज़र आता है के तुम हो
ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है के तुम हो
(सिम्त = तरफ़, ओर)
ये ख़्वाब है, ख़ुश्बू है, के झोंका है, के पल है
ये धुंध है, बादल है, के साया है, के तुम हो
इस दीद की साअत में कई रंग हैं लरज़ाँ
मैं हूँ के कोई और है दुनिया है के तुम हो
(दीद= दर्शन, दीदार), (साअत = मुहूर्त, क्षण, पल, समय), (लरज़ाँ = काँपता हुआ, थरथराता हुआ)
देखो ये किसी और की आँखें हैं के मेरी
देखूँ ये किसी और का चेहरा है के तुम हो
ये उम्र-ए-गुरेज़ाँ कहीं ठहरे तो ये जानूँ
हर साँस में मुझको ये लगता है के तुम हो
(उम्र-ए-गुरेज़ाँ = भागती हुई उम्र)
हर बज़्म में मौज़ू-ए-सुख़न दिल-ज़दगाँ का
अब कौन है, शीरीं है, के लैला है, के तुम हो
(बज़्म = महफ़िल, सभा), (मौज़ू-ए-सुख़न = कविता का विषय), (दिल-ज़दगाँ = दिल की चोट खाये हुए)
इक दर्द का फैला हुआ सहरा है के मैं हूँ
इक मौज में आया हुआ दरिया है के तुम हो
(सहरा = रेगिस्तान), (दरिया = समुद्र)
वो वक़्त न आये के दिल-ए-ज़ार भी सोचे
इस शहर में तन्हा कोई हम सा है के तुम हो
(दिल-ए-ज़ार = दुखी/ बेबस दिल),
आबाद हम आशुफ़्ता सरों से नहीं मक़्तल
ये रस्म अभी शहर में ज़िन्दा है के तुम हो
(आशुफ़्ता = विकल, बेचैन, आतुर), (मक़्तल = वह स्थान जहाँ लोग क़त्ल किये जाते हों, वधस्थल)
ऐ जान-ए-'फ़राज़' इतनी भी तौफ़ीक़ किसे थी
हमको ग़म-ए-हस्ती भी गवारा है के तुम हो
(तौफ़ीक़ = सामर्थ्य, शक्ति), (ग़म-ए-हस्ती = जीवन का दुःख)
-अहमद फ़राज़
Jis simt bhi dekhooN nazar aata hai ke tum ho
Ae jaan-e-jahaaN ye koi tum saa hai ke tum ho
Yeh khwaab hai, khushboo hai, ke jhonka hai, ke pal hai
Yeh dhundh hai, baadal hai, ke saayaa hai, ke tum ho
Is deed ki saa'Aat main kayi rang hain larzaaN
Mein hooN ke koi aur hai duniya hai ke tum ho
Dekho ye kisi aur ki aankhAin hain ke meri
DekhooN ye kisi aur ka chehra hai ke tum ho
Ye umr-e-gurezaaN kahin thahre to ye jaanooN
Har saans main mujh ko ye lagta hai ke tum ho
Har bazm main mauzoo-e-suKhan dil zadgaaN ka
Ab kaun hai Shireen hai ke Laila hai ke tum ho
Ik dard ka phaila hua sahara hai ke mein hooN
Ik mauj main aaya hua dariya hai ke tum ho
Woh waqt na aaye ke dil-e-zaar bhi soche
Is shehar main tanha koi hum sa hai ke tum ho
Aabaad hum aashufta saron se nahin maqtal
Yeh rasm abhi shehar main zinda hai ke tum ho
Ae jaan-e-'Faraz' itni bhi taufeeq kise thi
Hum ko ghum-e-hasti bhi gawaara hai ke tum ho
-Ahmed Faraz
ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है के तुम हो
(सिम्त = तरफ़, ओर)
ये ख़्वाब है, ख़ुश्बू है, के झोंका है, के पल है
ये धुंध है, बादल है, के साया है, के तुम हो
इस दीद की साअत में कई रंग हैं लरज़ाँ
मैं हूँ के कोई और है दुनिया है के तुम हो
(दीद= दर्शन, दीदार), (साअत = मुहूर्त, क्षण, पल, समय), (लरज़ाँ = काँपता हुआ, थरथराता हुआ)
देखो ये किसी और की आँखें हैं के मेरी
देखूँ ये किसी और का चेहरा है के तुम हो
ये उम्र-ए-गुरेज़ाँ कहीं ठहरे तो ये जानूँ
हर साँस में मुझको ये लगता है के तुम हो
(उम्र-ए-गुरेज़ाँ = भागती हुई उम्र)
हर बज़्म में मौज़ू-ए-सुख़न दिल-ज़दगाँ का
अब कौन है, शीरीं है, के लैला है, के तुम हो
(बज़्म = महफ़िल, सभा), (मौज़ू-ए-सुख़न = कविता का विषय), (दिल-ज़दगाँ = दिल की चोट खाये हुए)
इक दर्द का फैला हुआ सहरा है के मैं हूँ
इक मौज में आया हुआ दरिया है के तुम हो
(सहरा = रेगिस्तान), (दरिया = समुद्र)
वो वक़्त न आये के दिल-ए-ज़ार भी सोचे
इस शहर में तन्हा कोई हम सा है के तुम हो
(दिल-ए-ज़ार = दुखी/ बेबस दिल),
आबाद हम आशुफ़्ता सरों से नहीं मक़्तल
ये रस्म अभी शहर में ज़िन्दा है के तुम हो
(आशुफ़्ता = विकल, बेचैन, आतुर), (मक़्तल = वह स्थान जहाँ लोग क़त्ल किये जाते हों, वधस्थल)
ऐ जान-ए-'फ़राज़' इतनी भी तौफ़ीक़ किसे थी
हमको ग़म-ए-हस्ती भी गवारा है के तुम हो
(तौफ़ीक़ = सामर्थ्य, शक्ति), (ग़म-ए-हस्ती = जीवन का दुःख)
-अहमद फ़राज़
Jis simt bhi dekhooN nazar aata hai ke tum ho
Ae jaan-e-jahaaN ye koi tum saa hai ke tum ho
Yeh khwaab hai, khushboo hai, ke jhonka hai, ke pal hai
Yeh dhundh hai, baadal hai, ke saayaa hai, ke tum ho
Is deed ki saa'Aat main kayi rang hain larzaaN
Mein hooN ke koi aur hai duniya hai ke tum ho
Dekho ye kisi aur ki aankhAin hain ke meri
DekhooN ye kisi aur ka chehra hai ke tum ho
Ye umr-e-gurezaaN kahin thahre to ye jaanooN
Har saans main mujh ko ye lagta hai ke tum ho
Har bazm main mauzoo-e-suKhan dil zadgaaN ka
Ab kaun hai Shireen hai ke Laila hai ke tum ho
Ik dard ka phaila hua sahara hai ke mein hooN
Ik mauj main aaya hua dariya hai ke tum ho
Woh waqt na aaye ke dil-e-zaar bhi soche
Is shehar main tanha koi hum sa hai ke tum ho
Aabaad hum aashufta saron se nahin maqtal
Yeh rasm abhi shehar main zinda hai ke tum ho
Ae jaan-e-'Faraz' itni bhi taufeeq kise thi
Hum ko ghum-e-hasti bhi gawaara hai ke tum ho
-Ahmed Faraz
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