हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे
ये ज़िन्दगी तो कोई बद-दुआ लगे है मुझे
मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ
वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे
मैं सो भी जाऊँ तो क्या मेरी बंद आँखों में
तमाम रात कोई झाँकता लगे है मुझे
-जाँ निसार अख़्तर
https://www.youtube.com/watch?v=39Nm_lyDegM
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
पसंद-ए-ख़ातिर-ए-अहल-ए-वफ़ा है मुद्दत से
ये दिल का दाग़ जो ख़ुद भी भला लगे है मुझे
(पसंद-ए-ख़ातिर-ए-अहल-ए-वफ़ा = वफ़ादार लोगों की सराहना)
जो आँसुओं में कभी रात भीग जाती है
बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे
(आवाज़-ए-पा = पदचाप, पैरों की आवाज़)
मैं सोचता था कि लौटूँगा अजनबी की तरह
ये मेरा गाँव तो पहचानता लगे है मुझे
न जाने वक़्त की रफ़्तार क्या दिखाती है
कभी कभी तो बडा ख़ौफ़ सा लगे है मुझे
बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद
हर एक फ़र्द कोई सानेहा लगे है मुझे
(फ़र्द = एक व्यक्ति), (सानेहा = आपत्ति, मुसीबत, दुर्घटना)
अब एक-आध कदम का हिसाब क्या रखिये
अभी तलक तो वही फ़ासला लगे है मुझे
हिकायत-ए-ग़म-ए-दिल कुछ कशिश तो रखती है
ज़माना ग़ौर से सुनता हुआ लगे है मुझे
(हिकायत-ए-ग़म-ए-दिल = दिल के दुःख की कहानी, दुःख भरी कहानी), (कशिश = आकर्षण, खिंचाव)
Har ek ruh mein ek gham chupa lage hai mujhe
Ye zindagi to koi bad-dua lage hai mujhe
Main jab bhi us ke khayalon mein kho sa jaata hoon
Wo khud bhi baat kare to bura lage hai mujhe
Main so bhi jaun to meri band aankhon mein
Tamaam raat koi jhankata lage hai mujhe
Pasand-e-khatir-e-ahal-e-wafaa hai muddat se
Ye dil ka daag jo khud bhi bhala lage hai mujhe
Jo aansuon mein kabhi raat bheeg jaati hai
Bahut kareeb wo aawaz-e-paa lage hai mujhe
Main sochata tha ki lautunga ajanabi ke tarah
Ye mera gaon to pahachanta lage hai mujhe
Na jaane waqt ki raftaar kya dikhaati hai
Kabhi kabhi to bada khauf sa lage hai mujhe
Bikhar gaya hai kuch is tarah aadmi ka wajood
Har ek fard koi saneha lage hai mujhe
Ab ek-aadh kadam ka hisaab kya rakhiye
Abhi talak to wahi fasala lage hai mujhe
Hikaayat-e-gham-e-dil kuch kashish to rakhti hai
Zamaana gaur se sunta hua lage hai mujhe
ये ज़िन्दगी तो कोई बद-दुआ लगे है मुझे
मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ
वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे
मैं सो भी जाऊँ तो क्या मेरी बंद आँखों में
तमाम रात कोई झाँकता लगे है मुझे
-जाँ निसार अख़्तर
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
पसंद-ए-ख़ातिर-ए-अहल-ए-वफ़ा है मुद्दत से
ये दिल का दाग़ जो ख़ुद भी भला लगे है मुझे
(पसंद-ए-ख़ातिर-ए-अहल-ए-वफ़ा = वफ़ादार लोगों की सराहना)
जो आँसुओं में कभी रात भीग जाती है
बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे
(आवाज़-ए-पा = पदचाप, पैरों की आवाज़)
मैं सोचता था कि लौटूँगा अजनबी की तरह
ये मेरा गाँव तो पहचानता लगे है मुझे
न जाने वक़्त की रफ़्तार क्या दिखाती है
कभी कभी तो बडा ख़ौफ़ सा लगे है मुझे
बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद
हर एक फ़र्द कोई सानेहा लगे है मुझे
(फ़र्द = एक व्यक्ति), (सानेहा = आपत्ति, मुसीबत, दुर्घटना)
अब एक-आध कदम का हिसाब क्या रखिये
अभी तलक तो वही फ़ासला लगे है मुझे
हिकायत-ए-ग़म-ए-दिल कुछ कशिश तो रखती है
ज़माना ग़ौर से सुनता हुआ लगे है मुझे
(हिकायत-ए-ग़म-ए-दिल = दिल के दुःख की कहानी, दुःख भरी कहानी), (कशिश = आकर्षण, खिंचाव)
Har ek ruh mein ek gham chupa lage hai mujhe
Ye zindagi to koi bad-dua lage hai mujhe
Main jab bhi us ke khayalon mein kho sa jaata hoon
Wo khud bhi baat kare to bura lage hai mujhe
Main so bhi jaun to meri band aankhon mein
Tamaam raat koi jhankata lage hai mujhe
Pasand-e-khatir-e-ahal-e-wafaa hai muddat se
Ye dil ka daag jo khud bhi bhala lage hai mujhe
Jo aansuon mein kabhi raat bheeg jaati hai
Bahut kareeb wo aawaz-e-paa lage hai mujhe
Main sochata tha ki lautunga ajanabi ke tarah
Ye mera gaon to pahachanta lage hai mujhe
Na jaane waqt ki raftaar kya dikhaati hai
Kabhi kabhi to bada khauf sa lage hai mujhe
Bikhar gaya hai kuch is tarah aadmi ka wajood
Har ek fard koi saneha lage hai mujhe
Ab ek-aadh kadam ka hisaab kya rakhiye
Abhi talak to wahi fasala lage hai mujhe
Hikaayat-e-gham-e-dil kuch kashish to rakhti hai
Zamaana gaur se sunta hua lage hai mujhe
-Jaan Nisar Akhtar
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