Saturday 17 January 2015

Ae jazba-e-dil gar maiñ chāhūñ/ ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ

ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए
मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए

(जज़्बा-ए-दिल = दिल की भावना), (मुक़ाबिल = सम्मुख, सामने), (गाम = कदम, पग)

ऐ शम्मा! क़सम परवाने की, इतना तो मेरी ख़ातिर करना
उस वक़्त भड़क कर गुल होना जब साहिब-ए-महफ़िल आ जाए

ऐ दिल की लगी चल यूँही सही चलता तो हूँ उन की महफ़िल में
उस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल आ जाए

ऐ रहबर-ए-कामिल चलने को तय्यार तो हूँ पर याद रहे
उस वक़्त मुझे भटका देना जब सामने मंज़िल आ जाए

(रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक), (कामिल = योग्य, दक्ष),

हाँ याद मुझे तुम कर लेना आवाज़ मुझे तुम दे लेना
इस राह-ए-मोहब्बत में कोई दरपेश जो मुश्किल आ जाए

(दरपेश = आगे, सामने)

अब क्यूँ ढूँडूँ वो चश्म-ए-करम होने दे सितम बाला-ए-सितम
मैं चाहता हूँ ऐ जज़्बा-ए-ग़म मुश्किल पस-ए-मुश्किल आ जाए

(चश्म-ए-करम = कृपादृष्टि), (बाला-ए-सितम = जुल्म के ऊपर), (जज़्बा-ए-ग़म = दुःख की भावना), (पस-ए-मुश्किल = मुश्किल के पीछे)

इस जज़्बा-ए-दिल के बारे में इक मशवरा तुम से लेता हूँ
उस वक़्त मुझे क्या लाज़िम है जब तुझ पे मिरा दिल आ जाए

(जज़्बा-ए-दिल = दिल की भावना), (लाज़िम = आवश्यक)

ऐ बर्क़-ए-तजल्ली कौंध ज़रा क्या मुझ को भी मूसा समझा है
मैं तूर नहीं जो जल जाऊँ जो चाहे मुक़ाबिल आ जाए

(बर्क़-ए-तजल्ली = प्रकाश फैलाने वाली बिजली), (तूर = सीरिया का एक पहाड़ जिस पर हज़रात मूसा ने ईश्वर का चमत्कार देखा था), (मुक़ाबिल = सम्मुख, सामने)

कश्ती को ख़ुदा पर छोड़ भी दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है
मुश्किल तो नहीं इन मौजों में बहता हुआ साहिल आ जाए

(कश्ती = नाव), (साहिल = किनारा), (हाफ़िज़ = रक्षक, बचानेवाला)

-बहज़ाद लखनवी






ae jazba-e-dil gar maiñ chāhūñ har chiiz muqābil aa jaa.e
manzil ke liye do gaam chalūñ aur sāmne manzil aa jaa.e

ae shamma! kasam parwaane ki, itna to meri khatir karna
us waqt bhadak kar gul hona jab sahib-e-mahfil aa jaa.e

ae dil kī lagī chal yūñhī sahī chaltā to huuñ un kī mahfil meñ
us vaqt mujhe chauñkā denā jab rañg pe mahfil aa jaa.e

ae rahbar-e-kāmil chalne ko tayyār to huuñ par yaad rahe
us vaqt mujhe bhaTkā denā jab sāmne manzil aa jaa.e

haañ yaad mujhe tum kar lenā āvāz mujhe tum de lenā
is rāh-e-mohabbat meñ koī darpesh jo mushkil aa jaa.e

ab kyuuñ DhūñDūñ vo chashm-e-karam hone de sitam bālā-e-sitam
maiñ chāhtā huuñ ai jazba-e-ġham mushkil pas-e-mushkil aa jaa.e

is jazba-e-dil ke baare meñ ik mashvara tum se letā huuñ
us vaqt mujhe kyā lāzim hai jab tujh pe mirā dil aa jaa.e

ae barq-e-tajallī kauñdh zarā kyā mujh ko bhī muusā samjhā hai
maiñ tuur nahīñ jo jal jā.ūñ jo chāhe muqābil aa jaa.e

kashtī ko ḳhudā par chhoḌ bhī de kashtī kā ḳhudā ḳhud hāfiz hai
mushkil to nahīñ in maujoñ meñ bahtā huā sāhil aa jaa.e

-Behzad Lakhnavi 

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