Saturday 17 January 2015

Kissa: Shaam se aankh mein namee si hai/ क़िस्सा: शाम से आँख में नमी सी है

शाम से आंख में नमी सी है


शाम से आँख में नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है..’

ये ग़ज़ल जगजीत जी की बेहतरीन ग़ज़लों में एक है जिसके रचनाकार है गुलज़ार साब,..जगजीत जी के पहले इस रचना को संगीत दिया पंचम दा ने १९८७ में एल्बम ‘दिल पड़ोसी हैं’ के लिए जो गुलज़ार आशा और पंचम दा की त्रिवेणी थी और गाया है आशा भोंसले ने...जो कुछ इस तरह है...
‘शाम से आँख में नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है..

दफ्न कर दो हमें तो सांस आये,
देर से सांस कुछ थमी सी है..

कौन पथरा गया है आँखों में,
बर्फ पलकों पे क्यूँ जमी सी है..’

.....और इस से भी पहले १९६८ में एक फिल्म ‘मिट्टी का देव’ में इसे मुकेश ने गाया था जिसे संगीतबद्ध किया था सलिल दा ने..सलिल चौधरी ने...इसके निर्माता थे सलिल चौधरी के भाई समीर चौधरी और संजीव कुमार इस फिल्म के नायक थे दुर्भाग्यवश ये फिल्म आग लगने की वजह से नष्ट हो गई और रिलीज न हो सकी..वो रचना कुछ इस तरह है...

शाम से आँख में नमी-नमी सी हैं,
आज फिर आपकी कमी-कमी सी है..

अजनबी सी होने लगी हैं आती जाती साँसे,
आंसूओ में ठहरी हुई है रूठी हुई सी यादें,
आज क्यूँ रात यूँ थमी-थमी सी है..

पत्थरों के होंठो पे हमने नाम तराशा अपना,
जागी जागी आँखों में भर के सोया हुआ था सपना,
आँख में नींद भी थमी-थमी सी हैं..

मुकेश जी की आवाज़ में ये गीत यहाँ सुनें https://www.youtube.com/watch?v=fZPYJwZw2W8

....और रोचकता ये है की ये गीत एक बंगाली गीत ‘मोन मताल सांझ सकाल...’ का रूपांतरण है जो इसी धुन में है, इसे भी सलिल दा ने ही लयबद्द किया है. https://www.youtube.com/watch?v=tUwroPlUmkU

मनोज कश्यप जी के सौजन्य से 

http://jagjitandchitra.blogspot.com/2014/10/shaam-se-aankh-mein-namee-si-hai.html

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