ये मोजज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे
(मोजज़ा =चमत्कार), (संग = पत्थर)
वो मेहरबाँ है तो इक़रार क्यूँ नहीं करता
वो बदगुमाँ है तो सौ बार आज़माये मुझे
(बदगुमाँ = जिसके मन में किसी के प्रति सन्देह उत्पन्न हुआ हो)
वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दग़ा करे वो किसी से तो शर्म आये मुझे
मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ "क़तील"
ग़म-ए-हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे
(ग़म-ए-हयात = जीवन का दुःख)
-क़तील शिफ़ाई
पूरी ग़ज़ल यहाँ पढ़ें : बज़्म-ए-अदब
ye mojeza bhi mohabbat kabhi dikhaaye muJhe
ke sang tuJhpe gire aur zakhm aaye muJhe
wo meharbaaN hai tho ikraar kyooN nahiN kartha
wo badgumaaN hai tho sau baar aazmaaye muJhe
wo mera dost hai saare jahaaN ko hai maaloom
daga kare wo kisi se tho sharm aaye muJhe
maiN apni zaat meiN neelam ho raha hooN 'qateel'
gham-e-hayaat se keh do khareed laaye muJhe
-Qateel Shifai
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे
(मोजज़ा =चमत्कार), (संग = पत्थर)
वो मेहरबाँ है तो इक़रार क्यूँ नहीं करता
वो बदगुमाँ है तो सौ बार आज़माये मुझे
(बदगुमाँ = जिसके मन में किसी के प्रति सन्देह उत्पन्न हुआ हो)
वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दग़ा करे वो किसी से तो शर्म आये मुझे
मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ "क़तील"
ग़म-ए-हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे
(ग़म-ए-हयात = जीवन का दुःख)
-क़तील शिफ़ाई
पूरी ग़ज़ल यहाँ पढ़ें : बज़्म-ए-अदब
ye mojeza bhi mohabbat kabhi dikhaaye muJhe
ke sang tuJhpe gire aur zakhm aaye muJhe
wo meharbaaN hai tho ikraar kyooN nahiN kartha
wo badgumaaN hai tho sau baar aazmaaye muJhe
wo mera dost hai saare jahaaN ko hai maaloom
daga kare wo kisi se tho sharm aaye muJhe
maiN apni zaat meiN neelam ho raha hooN 'qateel'
gham-e-hayaat se keh do khareed laaye muJhe
-Qateel Shifai
वाह! कितनी खूबसूरत लाइन्स लिखी हैँ, और उसपे ग़ज़ल की धुन भी कमालकी हैँ..
ReplyDelete