धुआँ बना के फ़िज़ा में उड़ा दिया मुझको
मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको
(फ़िज़ा = वातावरण)
तरक्कियों का फ़साना सुना दिया मुझको
अभी हंसा भी न था और रुला दिया मुझको
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिये
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको
(हर्फ़ = अक्षर, शब्द, बात)
सफ़ेद संग की चादर लपेट कर मुझ पर
फ़सिल-ए-शहर में किसने सजा दिया मुझको
(संग = पत्थर), (फ़सिल-ए-शहर = शहर की चारदीवारी या परकोटा)
मैं एक ज़र्रा बुलन्दी को छूने निकला था
हवा ने थम के ज़मीं पर गिरा दिया मुझको
जिसे रहा है मेरी ज़िन्दगी पे हक़ बरसों
गज़ब तो ये है उसी ने भुला दिया मुझको
न जाने कौन सा जज़्बा था जिस ने ख़ुद ही 'नज़ीर'
मेरी ही ज़ात का दुश्मन बना दिया मुझ को
-नज़ीर बाकरी
Dhooan banaake fizaan mein udaa diya mujhko
main jal raha tha kisi ne bujha diya mujhko
Khada hoon aaj bhi roti ke chaar harf liye
Sawaal ye hai kitaabon ne kya diya mujhko
Safed sang ki chaadar lapet kar mujhpar
Faseel-e-shehar me kis ne saja diya mujhko
Main ek zarra bulandi ko choone nikla thaa
Hawa ne tham ke zameen par gira diya mujhko
Jise raha hai meri zindagi pe haq barson
Gazab to ye hai usi ne bhula diya mujhko
-Nazeer Bakri
मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको
(फ़िज़ा = वातावरण)
तरक्कियों का फ़साना सुना दिया मुझको
अभी हंसा भी न था और रुला दिया मुझको
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिये
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको
(हर्फ़ = अक्षर, शब्द, बात)
सफ़ेद संग की चादर लपेट कर मुझ पर
फ़सिल-ए-शहर में किसने सजा दिया मुझको
(संग = पत्थर), (फ़सिल-ए-शहर = शहर की चारदीवारी या परकोटा)
मैं एक ज़र्रा बुलन्दी को छूने निकला था
हवा ने थम के ज़मीं पर गिरा दिया मुझको
जिसे रहा है मेरी ज़िन्दगी पे हक़ बरसों
गज़ब तो ये है उसी ने भुला दिया मुझको
न जाने कौन सा जज़्बा था जिस ने ख़ुद ही 'नज़ीर'
मेरी ही ज़ात का दुश्मन बना दिया मुझ को
-नज़ीर बाकरी
Dhooan banaake fizaan mein udaa diya mujhko
main jal raha tha kisi ne bujha diya mujhko
Khada hoon aaj bhi roti ke chaar harf liye
Sawaal ye hai kitaabon ne kya diya mujhko
Safed sang ki chaadar lapet kar mujhpar
Faseel-e-shehar me kis ne saja diya mujhko
Main ek zarra bulandi ko choone nikla thaa
Hawa ne tham ke zameen par gira diya mujhko
Jise raha hai meri zindagi pe haq barson
Gazab to ye hai usi ne bhula diya mujhko
-Nazeer Bakri
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