दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
दिल में कुछ यूँ सँभालता हूँ ग़म
जैसे ज़ेवर सँभालता है कोई
आईना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछलता है कोई
(शजर = पेड़, वृक्ष)
फिर नज़र में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुग़ालता है कोई
(मुग़ालता = भ्रम, भूल)
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
-गुलज़ार
Din kuch aise guzaarta hai koi
Jaise ehasan utaarta hai koi
Aayina dekhkar tasalli hui
Humko is ghar main jaanta hai koi
Pak gaya hai shejar pe fal shaayad
Fir se patthar uchaalta hai koi
Der se goonjte hain sannaate
Jaise humko pukaarta hai koi
-Gulzar
दिल में कुछ यूँ सँभालता हूँ ग़म
जैसे ज़ेवर सँभालता है कोई
आईना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछलता है कोई
(शजर = पेड़, वृक्ष)
फिर नज़र में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुग़ालता है कोई
(मुग़ालता = भ्रम, भूल)
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
-गुलज़ार
Din kuch aise guzaarta hai koi
Jaise ehasan utaarta hai koi
Aayina dekhkar tasalli hui
Humko is ghar main jaanta hai koi
Pak gaya hai shejar pe fal shaayad
Fir se patthar uchaalta hai koi
Der se goonjte hain sannaate
Jaise humko pukaarta hai koi
-Gulzar
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