तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई, वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिये, बहला भी गए तड़पा भी गए
(तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू = दुखी/ व्यथित दिल को आराम) , (सई = प्रयत्न, कोशिश) , (करम = कृपा, अनुग्रह)
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके, कुछ कह न सके कुछ सुन न सके
यां हम ने ज़बाँ ही खोली थी, वाँ आँख झुकी शर्मा भी गए
(अर्ज़-ए-वफ़ा = वादा पूरा करने का निवेदन)
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
सब ज़ाम-ब-क़फ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए
(महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती = ख़ुशी और आनंद की महफ़िल), (अंजुमन-ए-इरफ़ानी = ज्ञान की सभा), (ज़ाम-ब-क़फ = शराब का गिलास हाथ में लेकर बैठना)
-मजाज़ लखनवी
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
अशुफ्तगी-ए-वहशत की कसम, हैरत की कसम, हसरत की कसम
अब आप कहे कुछ या न कहे हम राज़-ए-तबस्सुम पा भी गए
(अशुफ्तगी-ए-वहशत = दीवानगी की घबराहट), (राज़-ए-तबस्सुम = मुस्कराहट का रहस्य)
रुदाद-ए-गम-ए-उल्फत उन से, हम क्या कहते क्यूँकर कहते
एक हर्फ़ न निकला होटों से और आँख में आंसूं आ भी गए
(रुदाद-ए-गम-ए-उल्फत = प्यार के दर्द का विवरण/ कहानी), (हर्फ़ = शब्द)
अरबाब-ए-जुनूँ पे फ़ुरकत में, अब क्या कहिये क्या क्या गुज़रा
आये थे सवाद-ए-उल्फत में, कुछ खो भी गए कुछ पा भी गए
(अरबाब-ए-जुनूँ = उन्माद की अवस्था में), (फ़ुरकत = वियोग/ जुदाई), (सवाद-ए-उल्फत = प्यार की गली)
ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है, क्या फ़िक्र है तुझ को ऐ साक़ी
महफ़िल तो तेरी सूनी न हुई, कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए
Tasqeen-e-dil-e-mahzooN na hui, wo sai-e-karam farmaa bhi gaye
Is sai-e-karam ko kya kahiye, bahla bhi gaye tadpa bhi gaye
Hum arz-e-wafa bhi kar na sake, kuch keh na sake, kuch sun na sake
Yaan hamne zabaaN hi kholi thi, waan aankh jhuki sharma bhi gaye
Is mehfil-e-kaif-o-masti mein, is anjuman-e-irfaani mein
Sab jaam-ba-kaf baithe hi rahe, hum pee bhi gaye, chalkaa bhi gaye
-Majaz Lakhnawi
इस सई-ए-करम को क्या कहिये, बहला भी गए तड़पा भी गए
(तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू = दुखी/ व्यथित दिल को आराम) , (सई = प्रयत्न, कोशिश) , (करम = कृपा, अनुग्रह)
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके, कुछ कह न सके कुछ सुन न सके
यां हम ने ज़बाँ ही खोली थी, वाँ आँख झुकी शर्मा भी गए
(अर्ज़-ए-वफ़ा = वादा पूरा करने का निवेदन)
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
सब ज़ाम-ब-क़फ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए
(महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती = ख़ुशी और आनंद की महफ़िल), (अंजुमन-ए-इरफ़ानी = ज्ञान की सभा), (ज़ाम-ब-क़फ = शराब का गिलास हाथ में लेकर बैठना)
-मजाज़ लखनवी
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
अशुफ्तगी-ए-वहशत की कसम, हैरत की कसम, हसरत की कसम
अब आप कहे कुछ या न कहे हम राज़-ए-तबस्सुम पा भी गए
(अशुफ्तगी-ए-वहशत = दीवानगी की घबराहट), (राज़-ए-तबस्सुम = मुस्कराहट का रहस्य)
रुदाद-ए-गम-ए-उल्फत उन से, हम क्या कहते क्यूँकर कहते
एक हर्फ़ न निकला होटों से और आँख में आंसूं आ भी गए
(रुदाद-ए-गम-ए-उल्फत = प्यार के दर्द का विवरण/ कहानी), (हर्फ़ = शब्द)
अरबाब-ए-जुनूँ पे फ़ुरकत में, अब क्या कहिये क्या क्या गुज़रा
आये थे सवाद-ए-उल्फत में, कुछ खो भी गए कुछ पा भी गए
(अरबाब-ए-जुनूँ = उन्माद की अवस्था में), (फ़ुरकत = वियोग/ जुदाई), (सवाद-ए-उल्फत = प्यार की गली)
ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है, क्या फ़िक्र है तुझ को ऐ साक़ी
महफ़िल तो तेरी सूनी न हुई, कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए
Tasqeen-e-dil-e-mahzooN na hui, wo sai-e-karam farmaa bhi gaye
Is sai-e-karam ko kya kahiye, bahla bhi gaye tadpa bhi gaye
Hum arz-e-wafa bhi kar na sake, kuch keh na sake, kuch sun na sake
Yaan hamne zabaaN hi kholi thi, waan aankh jhuki sharma bhi gaye
Is mehfil-e-kaif-o-masti mein, is anjuman-e-irfaani mein
Sab jaam-ba-kaf baithe hi rahe, hum pee bhi gaye, chalkaa bhi gaye
-Majaz Lakhnawi
Hum arz-e-wafa bhi kar na sake, kuch keh na sake, kuch sun na sake...***''''
ReplyDeleteक्या ख़ूब बहुत ख़ूबसूरत
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