अगर ना ज़ोहराजबीनों के दर्मियाँ गुज़रे
तो फिर ये कैसे कटे ज़िन्दगी कहाँ गुज़रे
मुझे ये वहम रहा मुद्दतों के जुर्रत-ए-शौक़
कहीं ना ख़ातिर-ए-मासूम पर गराँ गुज़रे
(गराँ = भारी)
ख़ता मुआफ़ ज़माने से बदगुमाँ होकर
तेरी वफ़ा पे भी क्या क्या हमें गुमाँ गुज़रे
मुझे था शिकवा-ए-हिज्राँ के ये हुआ महसूस
मेरे क़रीब से होकर वो नागहाँ गुज़रे
(शिकवा-ए-हिज्राँ = जुदाई की शिकायत), (नागहाँ = अचानक)
-जिगर मुरादाबादी
Singer: Vinod Sehgal
तो फिर ये कैसे कटे ज़िन्दगी कहाँ गुज़रे
मुझे ये वहम रहा मुद्दतों के जुर्रत-ए-शौक़
कहीं ना ख़ातिर-ए-मासूम पर गराँ गुज़रे
(गराँ = भारी)
ख़ता मुआफ़ ज़माने से बदगुमाँ होकर
तेरी वफ़ा पे भी क्या क्या हमें गुमाँ गुज़रे
मुझे था शिकवा-ए-हिज्राँ के ये हुआ महसूस
मेरे क़रीब से होकर वो नागहाँ गुज़रे
(शिकवा-ए-हिज्राँ = जुदाई की शिकायत), (नागहाँ = अचानक)
-जिगर मुरादाबादी
Singer: Vinod Sehgal
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