Friday, 31 October 2014

Maine dil se kahaa/ मैंने दिल से कहा

मैंने दिल से कहा, ऐ दीवाने बता
जब से कोई मिला, तू है खोया हुआ
ये कहानी है क्या, है ये क्या सिलसिला, ऐ दीवाने बता

मैंने दिल से कहा, ऐ दीवाने बता
धड़कने में छुपी, कैसी आवाज़ है
कैसा ये गीत है कैसा ये साज़ है
कैसी ये बात है, कैसा ये राज़ है, ऐ दीवाने बता

मेरे दिल ने कहा, जब से कोई मिला
चाँद, तारे, फ़िज़ा, फूल, भंवरे, हवा
ये हसीं वादियाँ, नीला ये आसमान
सब है जैसे नया, मेरे दिल ने कहा

मैंने दिल से कहा, मुझको ये तो बता
जो है तुझको मिला, उसमे क्या बात है
क्या है जादूगरी, कौन है वो परी, ऐ दीवाने बता

मेरे दिल ने कहा
न वो कोई परी, न कोई महजबीं
न वो दुनिया में सबसे है ज्यादा हसीं
सीधी-साधी सी है, भोली-भाली सी है
लेकिन उसमे अदा इक निराली सी है
उसके बिन मेरा जीना ही बेकार है

मैंने दिल से कहा, बात इतनी सी है के तुझे प्यार है

मेरे दिल ने कहा, मुझको इक़रार है, हाँ मुझे प्यार है

-जावेद अख़्तर


Maine dil se kahaa, ae deewaane bataa
Jab se koi milaa, tu hai khoyaa huaa
Ye kahaani hai kyaa, hai ye kyaa silsilaa, ae deewaane bataa

Maine dil se kahaa, ae deewaane bataa
Dhadkanon mein chhupi, kaisi aawaaz hai
Kaisaa ye geet hai kaisaa ye saaz hai
Kaisi ye baat hai, kaisaa ye raaz hai, ae deewaane bataa

Mere dil ne kahaa, jab se koi milaa
Chaand taare fizaa, phool bhanwre hawaa
Ye hasin waadiyaan, neelaa ye aasmaan
Sab hai jaise nayaa, mere dil ne kahaa

Maine dil se kahaa, mujhko ye to bataa
Jo hai tujhko milaa, usmein kyaa baat hai
Kyaa hai jaadoogari, kaun hai wo pari, ae deewaane bataa

Mere dil ne kahaa
Naa wo koi pari, naa koi maahjabin
Naa wo duniyaan mein sabse hai zyaadaa hasin
Seedhi saadhi si hai, bholi bhaali si hai
Lekin usmein adaa ik niraali si hai
Uske bin meraa jeenaa hi bekaar hai

Maine dil se kahaa, baat itni si hai, ke tujhe pyaar hai
Mere dil ne kahaa, mujhko iqaraar hai, haan mujhe pyaar hai

-Javed Akhtar

Kabhi yun bhi to ho/ कभी यूँ भी तो हो

कभी यूँ भी तो हो
कभी यूँ भी तो हो
दरिया का साहिल हो                (साहिल = किनारा)
पूरे चाँद की रात हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें
जब घर से तुम्हारे गुज़रें
तुम्हारी ख़ुशबू चुरायें
मेरे घर ले आयें

कभी यूँ भी तो हो
सूनी हर महफ़िल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
ये बादल ऐसा टूट के बरसे
मेरे दिल की तरह मिलने को
तुम्हारा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से

कभी यूँ भी तो हो
तनहाई हो, दिल हो
बूँदें हो, बरसात हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो

-जावेद अख़्तर









Kabhi yun bhi to ho
Dariyaa kaa saahil ho, poore chaand ki raat ho
Aur tum aao

Kabhi yun bhi to ho
Pariyon ki mahfil ho, koi tumhaari baat ho
Aur tum aao

Kabhi yun bhi to ho
Ye naram mulaayam thandi havaayen
Jab ghar se tumhaare guzaren, tumhaari Khushboo churaayen
Mere ghar le aayen
Kabhi yun bhi to ho

Sooni har mahfil ho, koi naa mere saath ho
Aur tum aao
Kabhi yun bhi to ho

Ye baadal aisaa toot ke barse
Mere dil ki tarah milne ko, tumhaara dil bhi tarse
Tum niklo ghar se
Kabhi yun bhi to ho

Tanhaai ho dil ho, boonde hon barsaat ho aur tum aao
Kabhi yun bhi to ho

-Javed Akhtar

Sach ye hai bekaar hamen gham hotaa hai/ सच ये है बेकार हमें ग़म होता है

सच ये है बेकार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है

ढलता सूरज, फैला जंगल, रस्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है

(आलम = दशा, हालत)

ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की
जब होता है कोई हमदम होता है

ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है

ज़हन की शाख़ों पर अश'आर आ जाते हैं
जब तेरी यादों का मौसम होता है

-जावेद अख़्तर



Sach ye hai bekaar hamen gham hotaa hai
Jo chaahaa thaa duniyaan mein kam hotaa hai

Dhaltaa suraj, phailaa jungal, rastaa gum
Hamse poochho kaisaa aalam hotaa hai

Ghairon ko kab fursat hai dukh dene ki
Jab hotaa hai koi hamdam hotaa hai

Zakhm to hamne in aankhon se dekhe hain
Logon se sunte hain marham hotaa hai

Zahan ki shaakhon par ash'aar aa jaate hain
Jab teri yaadon kaa mausam hotaa hai

-Javed Akhtar

Main bhool jaoon tumhen/ मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है

मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है                               (मुनासिब = उचित)
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
के तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं
यहाँ तो दिल का ये आलम है क्या कहूँ
कमबख़्त
भुला सका न ये वो सिलसिला जो था ही नहीं
वो इक ख़याल जो आवाज़ तक गया ही नहीं

वो एक बात जो मैं कह नहीं सका तुम से
वो एक रब्त जो हम में कभी रहा ही नहीं                                    (रब्त = संबंध, मेल)
मुझे है याद वो सब जो कभी हुआ ही नहीं
अगर ये हाल है दिल का तो कोई समझाए

तुम्हें भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
के तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं

-जावेद अख़्तर


Main bhool jaoon tumhen ab yahi munaasib hai
Magar bhulaanaa bhi chaahoon to kis tarah bhooloon
Ke tum to phir bhi haqeeqat ho koi Khwaab nahin
Yahaan to dil kaa ye aalam hai kyaa kahoon
Kambakht
Bhulaa sakaa naa ye wo silsilaa jo thaa hi nahin
Wo ek khyaal jo aawaaz tak gayaa hi nahin

Wo ek baat jo main kah nahin sakaa tumse
Wo ek rabt jo ham mein kabhi rahaa hi nahin
Mujhe hai yaad wo sab jo kabhi huaa hi nahin
Agar ye haal hai dil kaa to koi samjhaaye

Tumhen bhulaanaa bhi chaahoon to kis tarah bhooloon
Ke tum to phir bhi haqeeqat ho koi khwaab nahin

-Javed Akhtar

Jaate jaate wo mujhe achchhi nishaani de gayaa/ जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया

जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊंगा ऐसी कहानी दे गया

उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बराए मेहरबानी दे गया

(बराए मेहरबानी = मेहरबानी  के वास्ते, मेहरबानी के लिए)

सब हवाएँ ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझको एक कश्ती बादबानी दे गया

(कश्ती बादबानी = पाल वाली नाव )

ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उसने इतना तो किया
मेरी पलकों की क़तारों को वो पानी दे गया

-जावेद अख़्तर




Jaate jaate wo mujhe achchhi nishaani de gayaa
Umr bhar dohraaoongaa aisi kahaani de gayaa

Us se main kuch paa sakoon aisi kahaan ummeed thi
Gham bhi wo shaayad baraaye meharbaani de gayaa

Sab hawaayen le gayaa mere samandar ki koi
Aur mujhko ek kashti baadbaani de gayaa

Khair main pyaasaa rahaa par usne itnaa to kiyaa
Meri palkon ki qataaron ko wo paani de gayaa

-Javed Akhtar

Saturday, 25 October 2014

Ye na thi hamari qismat, ke visaal-e-yaar hota/ ये न थी हमारी क़िस्मत, के विसाल-ए-यार होता

ये न थी हमारी क़िस्मत, के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इन्तिज़ार होता

(विसाल-ए-यार = प्रियतम से मिलन)

तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर ऐतबार होता

(ऐतबार = विश्वास)

ये कहाँ की दोस्ती है, के बने हैं दोस्त, नासेह
कोई चारासाज़ होता, कोई ग़मगुसार होता

(नासेह = उपदेशक), (चारासाज़ = उपचारक, चिकित्सक), (ग़मगुसार = हमदर्द, दुःख बंटानेवाला)

कहूँ किससे मैं कि क्या है, शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता

(शब-ए-ग़म = ग़म की रात)

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये ख़लिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता

(तीर-ए-नीमकश = आधा खिंचा हुआ तीर, कमज़ोर तीर), (ख़लिश = चुभन, वेदना)

ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान 'ग़ालिब'
तुझे हम वली समझते जो न बादा-ख़्वार होता

(मसाइल-ए-तसव्वुफ़ = सूफियाना भेद, भक्ति की समस्याएँ), (बयान = वर्णन), (वली = पाक इंसान, ऋषि, मुनि), (
बादा-ख़्वार = शराबी)

-मिर्ज़ा ग़ालिब



Live


Ye na thi hamari qismat, ke visaal-e-yaar hota
Agar aur jeete rahate yahi intezar hota

Tere vade par jiye ham to ye jaan jhooth jana
Ke khushi se mar na jate agar aitabar hota

Ye kahan ki dosti hai, ke bane hain dost naaseh
Koi chaarasaz hota, koi ghamgusaar hota

Kahun kis se main ke kya hai, shab-e-gham buri balaa hai
Mujhe kya bura tha marna, agar ek baar hota

Koi mere dil se poochhe tere teer-e-neemkash ko
Ye khalish kahan se hoti, jo jigar ke paar hota

Ye masaayil-e-tasavvuf ye tera bayaan 'Gaalib'
Tujhe hum wali samajhte jo na baada-khwaar hota

-Mirza Ghalib


Wo firaaq aur wo visaal kahaan/ वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ

(फ़िराक़ - वियोग, विरह, जुदाई), (विसाल  = मिलन), (शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल = रात और दिन और महीने और वर्ष, समय)

फ़ुर्सत-ए-कार-ओ-बार-ए-शौक़ किसे
ज़ौक़-ए-नज़्ज़ार:-ए-जमाल कहाँ

(फ़ुर्सत-ए-कार-ओ-बार-ए-शौक़ = दीन-दुनिया के व्यापार लिए अवकाश), (ज़ौक़-ए-नज़्ज़ार:-ए-जमाल = सौंदर्य का तमाशा देखने का आनंद)

थी वो इक शख़्स के तसव्वुर से
अब वह रानाई-ए-ख़याल कहाँ

 (तसव्वुर = ख़याल, विचार, याद), (रानाई-ए-ख़याल = कल्पना का श्रृंगार)

ऐसा आसाँ नहीं, लहू रोना
दिल में ताक़त, जिगर में हाल कहाँ

(लहू रोना = ख़ून के आँसू बहाना, बहुत ज्यादा दुखी होना)

फ़िक़्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ

-मिर्ज़ा ग़ालिब




Wo firaaq aur wo visaal kahaaN
Wo shab-o-roz-o-maah-o-saal kahaaN

Fursat-e-kaar-o-baar-e-shauk kise
Zauk-e-nazzara-e-jamaal kahan

thi wo ik shakhs ke tasavvur se
ab vo raaNnaai-e-Khayaal kahaaN

aisaa aasaaN nahiin lahu ronaa
dil meiN taaqat jigar meiN haal kahaaN

fikr-e-duniyaa mein sar khapaataa huN
maiN kahaaN aur ye vabaal kahaaN

-Mirza Ghalib

Zulmat-kade mein mere shab-e-gham ka josh hai/ ज़ुल्मत-कदे में मेरे, शब-ए-ग़म का जोश है

ज़ुल्मत-कदे में मेरे, शब-ए-ग़म का जोश है
इक शम`अ है दलील-ए-सहर, सो ख़मोश है

(ज़ुल्मत-कदे = अँधेरे घर), (शब-ए-ग़म का जोश = ग़म की रात का तूफ़ान, अँधेरा ही अँधेरा), (शम`अ = शमा, दीपक, चिराग़), (दलील-ए-सहर = सुबह का सबूत, सुबह के होने का प्रमाण)

दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई
इक शम`अ रह गई है, सो वह भी ख़मोश है

(दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब = रात की महफ़िल के विरह का दाग़)

आते हैं ग़ैब से, ये मज़ामीं ख़याल में
ग़ालिब, सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है

(ग़ैब = परोक्ष, आकाश, परलोक) , (मज़ामीं = विषय, विचार), (सरीर-ए-ख़ामा = क़लम की आवाज़), (नवा-ए-सरोश = जिब्रील (ख़ुदा का सन्देश लाने वाला फ़रिश्ता) की आवाज़)

-मिर्ज़ा ग़ालिब


Zulmat-kade mein mere shab-e-gham ka josh hai
Ik shamma'a hai daleel-e-sahar, so khamosh hai

Daagh-e-firaaq-e-sohabat-e-shab ki jali hui
Ik shamma`a reh gai hai so wo bhi khamosh hai

Aate hain ghaib se ye mazaameen khayaal mein
'Ghalib',  sareer-e-khaama nawa-e-sarosh hai

 -Mirza Ghalib

Dil-e-naadaan tujhe huaa kya hai/ दिल-ए-नादाँ, तुझे हुआ क्या है

दिल-ए-नादाँ, तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है

(दिल-ए-नादाँ = नादान/ नासमझ दिल)

हम को उनसे, वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते, वफ़ा क्या है

हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार
या इलाही, ये माजरा क्या है

(मुश्ताक़ = उत्सुक, अभिलाषी), (बेज़ार = नाराज़, अप्रसन्न)

जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर यह हँगामा ऐ ख़ुदा क्या है

जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता, दुआ क्या है

(निसार = निछावर)

-मिर्ज़ा ग़ालिब



Dil-e-naadaan tujhe huaa kya hai
Aakhir is dard  ki dawa kya hai

Hamko unse wafa ki hai ummeed
Jo naheen jaante wafa kya hai

Ham hain mushtaaq aur woh bezaar
Ya ilaahee, Ye maajra kya  hai

Jab ki tujh bin naheen koi maujood
Fir ye hangaama, Ay Khuda! Kya hai

Jaan tum  par nisaar karta  hoon
Main naheen jaanata duaa kya hai

-Mirza Ghalib

Sab kahan, kuch lala-o-gul mein numaayan ho gayeen/ सब कहाँ, कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

सब कहाँ, कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी, के पिन्हाँ हो गईं

(लाला-ओ-गुल = लाला और गुलाब के फूल), (नुमायाँ = प्रकट, ज़ाहिर), (पिन्हाँ = विलीन, छिपा हुआ)

रंज से ख़ूगर हुआ इन्सां, तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी, के आसाँ हो गईं

(रंज = कष्ट, दुःख, आघात, पीड़ा), (ख़ूगर = अभ्यस्त, आदी)

यूं ही गर रोता रहा ग़ालिब, तो अय अहल-ए-जहाँ
देखना इन बस्तियों को तुम, के वीराँ हो गईं

(अहल-ए-जहाँ = दुनियावालों), (वीराँ = वीरान, निर्जन, उजाड़)

-मिर्ज़ा ग़ालिब



Sab kahan, kuch lala-o-gul mein numaayan ho gayeen
Khaak mein kya suraten hongi ke pinhan ho gayeen

Ranj se khuoogar hua insaan to mit jaata hai ranj
Mushkilyen mujh par padi itni ke aasaan ho gayeen

Yun hi gar rota raha 'Ghalib' to ay ahel-e-jahaan
Dekhna in bastiyon ko tum ke veeraan ho gayeen

-Mirza Ghalib


Na tha kuch to khuda tha/ न था कुछ तो ख़ुदा था

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता

हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस, तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से, तो ज़ानों पर धरा होता

(बेहिस = बेहोश, चेतनाशून्य, सुन्न), (ज़ानों = घुटनों)

हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया, पर याद आता है
वह हर एक बात पर कहना, कि यूँ होता, तो क्या होता

-मिर्ज़ा ग़ालिब




Na tha kuch to khuda tha, kuch na hota to khuda hota
Duboyaa mujh ko hone ne, na hota main to kya hota

Hua jab gham se yun behis to gham kya sar ke katne ka
Na hota gar judaa tan se to zaannon par dharaa hota

Hui muddat ke 'Ghalib' mar gayaa par yaad aataa hai
Wo har ek baat pe kahna ke yun hota to kya hota

-Mirza Ghalib

Unke dekhe se jo aa jaati hai moonh par raunaq/ उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक़

और बाज़ार से ले आए, अगर टूट गया
साग़र-ए-जम से मेरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है

(साग़र-ए-जम = जमशेद का मधुपात्र/ प्याला, जमशेद  ईरान का प्रसिद्ध सम्राट था, उसका मधुपात्र प्रसिद्ध है),
(जामे-सिफ़ाल = मिट्टी का कुल्हड़)

उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है

देखिये, पाते हैं उश्शाक़, बुतों से क्या फ़ैज़
इक बरहमन ने कहा है, कि ये साल अच्छा है

(उश्शाक़ = आशिक़ का बहुवचन), (बुत = प्रतिमा, माशूक़, प्रेमिका), (फ़ैज़ = लाभ,उपकार), (बरहमन  = ब्राह्मण, पंडित)

हम को मालूम है, जन्नत की हक़ीक़त, लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को, ग़ालिब, ये ख़याल अच्छा है

(जन्नत = स्वर्ग), (हक़ीक़त = वास्तविकता)

-मिर्ज़ा ग़ालिब




Aur baazaar se le aaye, agar toot gaya
Saagar-e-jam se mera jaam-e-sifaal achcha hai

Unke dekhe se jo aa jaati hai moonh par raunaq
Wo samajhten hain ke beemaar ka haal achcha hai

Dekhiye, paate hain ushshaaq, buton se kya faiz
Ik barhaman ne kaha hai ke ye saal achcha hai

Humko maaloom hai jannat ki haqeeqat lekin
Dil ke khush rakhne ko 'Ghalib' ye khayaal achcha hai

-Mirza Ghalib

Baazeechaa-e-atfaal hai duniya mere aage/ बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा, मेरे आगे

(बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल = बच्चों का खेल), (शब-ओ-रोज़ = रात और दिन)

होता है निहाँ गर्द में सहरा, मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया, मेरे आगे

(निहाँ = निहित, छिपा हुआ), (गर्द = धूल), (सहरा = रेगिस्तान), (जबीं = माथा, मस्तक)

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा, तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा, मेरे आगे

ईमाँ मुझे रोके है, जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मेरे पीछे है, कलीसा मेरे आगे

(ईमाँ = ईमान, सत्य, धर्म, आस्था), (कुफ़्र = अनास्था, अधर्म), (काबा = मस्जिद), (कलीसा = गिरजाघर)

गो हाथ को जुंबिश नहीं, आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे

(गो = यद्यपि, अगरचे), (जुंबिश = कंपन), (साग़र-ओ-मीना = प्याला और शराब)

-मिर्ज़ा ग़ालिब


Baazeechaa-e-atfaal hai duniya mere aage
Hota hai shab-o-roz tamaasha, mere aage

Hota hai nihaaN gard meiN sehara, mere hote
Ghisata hai jabeeN Khaak pe dariya, mere aage

Mat pooch ke kya haal hai mera, tere peeche
Tu dekh ke kya rang tera, mere aage

ImaaN mujhe roke hai jo kheeNche hai mujhe kufr
Ka'aba mere peeche hai kaleesa mere aage

Go haath ko jumbish naheeN aaNhoN meiN to dam hai
Rehne do abhi saagar-o-meena mere aage

-Mirza Ghalib

Hazaaron khwahishain aisi/ हज़ारों ख़वाहिशें ऐसी

हज़ारों ख़वाहिशें ऐसी, कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले

(ख़्वाहिश = इच्छा, अभिलाषा)

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं, लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले

(ख़ुल्द = स्वर्ग, जन्नत), (आदम = सबसे पहला मनुष्य)

मुहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं, जिस काफ़िर पे दम निकले

(काफ़िर = ईश्वर को ना मानने वाला, यहाँ प्रेमिका के लिए इस्तेमाल किया है)

कहाँ मैख़ाने का दरवाज़ा, ग़ालिब. और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था, कि हम निकले

(वाइज़ = धर्मोपदेशक)

-मिर्ज़ा ग़ालिब 

ख़ुदा के वास्ते पर्दा ना काबे से उठा ज़ालिम 
कहीं ऐसा ना हो याँ भी वही काफ़िर सनम निकले 

-बहादुर शाह ज़फ़र 






Private party


Hazaaron khwahishain aisi ke har khwahish pe dum nikle
Bahot nikle mere armaan lekin phir bhi kam nikle

Nikalna khud se aadam ka sunte aayain hain lekin
Bohot be-aabru hokar tere kooche se ham nikle

Mohabbat mein naheen hai farq jeene aur marne kaa
Usee ko dekh kar jeete hain jis kaafir pe dam nikle

Kahaan maikhaane ka darwaaza 'Ghalib' aur kahaan waaiz
Par itana jaante hain kal wo jaata tha ke ham nikle

-Mirza Ghalib

Khuda ke waaste parda na kaabe se uthaa zaalim
Kaheen aisa na ho yaan bhi wohi kaafir sanam nikle

-Bahadur Shah Zafar

Dil hi to hai na sang-o-khisht dard se bhar na aaye kyon/ दिल ही तो है, न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों

दिल ही तो है, न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यों
रोएंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों

(संग-ओ-ख़िश्त = पत्थर और ईंट)

क़ैद-ए-हयात-ओ-बन्द-ए-ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले, आदमी ग़म से निजात पाए क्यों

(क़ैद-ए-हयात-ओ-बन्द-ए-ग़म = जीवन की क़ैद और दुःख का बंधन), (निजात = छुटकारा, मुक्ति)

दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम, ग़ैर हमें उठाए क्यों

(दैर = मंदिर), (हरम = मस्जिद), (दर = दरवाज़ा, द्वार), (आस्ताँ = चौखट), (रहगुज़र = राह, पथ)

हाँ वह नहीं ख़ुदा परस्त, जाओ वह बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन-ओ-दिल अज़ीज़, उस की गली में जाए क्यों

(ख़ुदा परस्त = ईश्वर को माननेवाला), (दीन-ओ-दिल = धर्म और हृदय), (अज़ीज़ = प्रिय)

ग़ालिब-ए-ख़स्ता के बग़ैर, कौन-से काम बन्द हैं
रोइये ज़ार ज़ार क्या, कीजिये हाय हाय क्यों

(ग़ालिब-ए-ख़स्ता = दुर्दशाग्रस्त ग़ालिब), (ज़ार ज़ार = फूट-फूटकर)

-मिर्ज़ा ग़ालिब

पूरी ग़ज़ल, अर्थ के साथ, यहाँ देखें मीर-ओ-ग़ालिब









Dil hi to hai na sang-o-khisht dard se bhar na aaye kyon
Royenge ham hazaar baar, koi hamein sataaye kyon

Qaid-e-hayaat-o-band-e-gham asl me dono ek hain
Maut se pahle aadmi gham se nijaat paaye kyon

Dair naheen, haram naheen, dar naheen, aastaan naheen
Baithe hain rehguzar pe ham, ghair hamein uthaaye kyon

Haan wo naheen khuda parast, jaao wo bewafa sahi
Jisko ho deen-o-dil 'azeez, uski gali mein jaaye kyon

'Ghalib'-e-khasta ke baghair kaun se kaam band hain?
Roiye zaar-zaar kya, keejiye haay-haay kyon?

Aah ko chaahiye ik umr asar hone tak/ आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक

(सर होना - श्रेष्ठ होना, जीतना)

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ, ख़ून-ए-जिगर होने तक

(सब्र-तलब = धैर्य की माँग), (बेताब = व्याकुल, बैचैन), (ख़ून-ए-जिगर = कलेजे का ख़ून)

हम ने माना, कि तग़ाफ़ुल न करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम, तुम को ख़बर होने तक

(तग़ाफ़ुल = उपेक्षा, बेरुख़ी)

ग़म-ए-हस्ती का, असद किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम`अ हर रंग में जलती है सहर होने तक

(ग़म-ए-हस्ती = जीवन का दुःख), (जुज़ = सिवाय), (मर्ग = मौत, मृत्यु), (सहर = सुबह)

-मिर्ज़ा ग़ालिब

पूरी ग़ज़ल, अर्थ के साथ, यहाँ देखें मीर-ओ-ग़ालिब





Aah ko chaahiye ik umr asar hone tak
Kaun jeeta hai teri zulf ke sar hone tak 

Aashiqee sabr talab aur tamanna betaab
Dil ka kya rang karoon khoon-e-jigar hone tak

Hamne maana, ke taghaful na karoge, lekin
Khaak ho jaayenge ham tumko khabar hone tak

Gham-e-hasti ka 'asad' kis se ho juz marg ilaaz
Shamma'a har rang mein jalti hai sahar hone tak

-Mirza Ghalib

Har ek baat pe kehte ho tum ke too kya hai/ हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं के ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और 

(सुख़नवर = कवि, शायर), (अंदाज़-ए-बयाँ = वर्णनशैली)

बल्लीमारां के मोहल्लों की वो पेचीदा दलीलों की-सी गलियाँ
सामने टाल के नुक्कड़ पे, बटेरों के कसीदे
गुड़गुड़ाती  हुई पान की पीकों में वह दाद , वह वाह्-वा
चंद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा-से कुछ टाट के परदे            (बोसीदा =फटे-पुराने)
एक बकरी के मिमयाने की आवाज़
और धुंधलाई हुई शाम के बेनूर अंधेरे                                    (बेनूर = ज्योति विहीन)
ऐसे दीवारों से मुँह जोड़ के चलते है यहाँ
चूड़ीवालान के कटरे की ' बड़ी बी ' के जैसे
अपनी बुझती हुई आँखों से दरवाज़े टटोले
इसी बेनूर अंधेरी-सी गली क़ासिम से
एक तरतीब चरागों की शुरु होती है
एक कुरान-ए-सुख़न का सफ़ा खुलता है                                 (सफ़ा = पन्ना)
असद उल्लाह खाँ ग़ालिब का पता मिलता है 
-गुलज़ार

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है

(अंदाज़-ए-गुफ़्तगू = बात करने का तरीक़ा, वार्ताशैली)

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारी जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है

(पैराहन = वस्त्र), (जैब = गरिबान, कुर्ते की कंठी), (हाजत-ए-रफ़ू = सिलाई की ज़रुरत)

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख़ जुस्तजू क्या है

(जुस्तजू = तलाश, खोज)

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है 

(ताक़त-ए-गुफ़्तार = बोलने की शक्ति), (आरज़ू  = कामना, इच्छा, लालसा)

-मिर्ज़ा ग़ालिब




Ghalib Live In Concert

Hain aur bhi duniya me sukhanwar bahut achche
Kahte hain ke Ghalib ka hai andaaz-e-bayaan aur

Har ek baat pe kehte ho tum ke too kya hai
Tumheen kaho ke yeh andaaz-e-guftgoo kya hai

Ragon mein daudte firne ke ham naheen qaayal
Jab aankh hi se na tapka to fir lahoo kya hai

Chipak raha hai badan par lahoo se pairaahan
Hamaari  jaib ko ab haajat-e-rafoo kya hai

Jalaa hai jism jahaan dil bhee jal gaya hoga
Kuredate ho jo ab raakh, justjoo kya hai 

Rahi na taaqat-e-guftaar, aur agar ho bhee
To kis ummeed pe  kahiye ke aarzoo kya hai

-Mirza Ghalib

Friday, 24 October 2014

Chale bhi aao wo hai kabr-e-faani dekhte jaao/ चले भी आओ वो है कब्र-ए-'फ़ानी' देखते जाओ

चले भी आओ वो है कब्र-ए-'फ़ानी' देखते जाओ
तुम अपने मरने वाले की निशानी देखते जाओ

अभी क्या है किसी दिन ख़ूँ रुलायेगी ये ख़ामोशी
ज़ुबान-ए-हाल की जद्द-ओ-बयानी देखते जाओ

(ज़ुबान-ए-हाल = जीभ की दशा), (जद्द-ओ-बयानी = कोशिश और वर्णन)

ग़रूर-ए-हुस्न का सदक़ा कोई जाता है दुनिया से
किसी की ख़ाक में मिलती जवानी देखते जाओ

(ग़रूर-ए-हुस्न = सुंदरता का घमंड), (सदक़ा = खैरात, निछावर, उतारा)

सुने जाते न थे तुम से मेरे दिन रात के शिकवे
कफ़न सरकाओ मेरी बे-ज़ुबानी देखते जाओ

-फ़ानी बदायूनी



इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

माल-ए-सोज़-ए-ग़म हाए! निहानी देखते जाओ
भड़क उठी है शम्मा-ए-ज़िंदगानी देखते जाओ

(माल-ए-सोज़-ए-ग़म = दुःख की जलन/ तपिश की संपत्ति), (निहानी = भीतरी, आंतरिक, अंदरूनी)

उधर मूँह फेर कर क्या ज़िबह करते हो, इधर देखो!
मेरी गर्दन पे ख़ंजर की रवानी देखते जाओ

(ज़िबह = जिसका वध किया गया हो),

बहार-ए-ज़िन्दगी का लुत्फ़ देखा है और देखोगे
किसी का ऐश मर्ग-ए-नागहानी देखते जाओ

(मर्ग-ए-नागहानी = अचानक होने वाली मृत्यु)

वो उठा शोर-ए-मातम आख़री दीदार-ए-मय्यत पर
अब उठा चाहते हैं नाश-ए-'फ़ानी' देखते जाओ

(दीदार-ए-मय्यत = अर्थी का दर्शन), (नाश = मृत शरीर, लाश)





Chale bhi aao wo hai kabr-e-faani dekhte jaao
Tum apne marne waale ki nishaani dekhte jaao

Abhi kya hai kisi din khoon rulaayegi ye khaamoshi
Zubaan-e-haal ki zaadd-o-bayaani dekhte jaao

Guroor-e-husn ka sadka koi jaata hai duniya se
Kisi ki khaak mein milti jawaani dekhte jaao

Sune jaate na the tumse mere din-raat ke shikwe
Kafan sarkao meri bezubaani dekhte jaao

-Faani Badayuni

Wo dil hi kya tere milne ki jo dua na kare/ वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे

वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर
ये और बात मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे

सुना है उसको मोहब्बत दुआएँ देती है
जो दिल पे चोट तो खाये मगर गिला न करे

(गिला = शिकायत)

बुझा दिया है नसीबों ने मेरे प्यार का चाँद 
कोई दिया मेरी पलकों पे अब जला न करे 

अगर वफ़ा पे भरोसा रहे न दुनिया को 
तो कोई शख़्स मोहब्बत का हौसला न करे

ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे
'क़तील' जान से जाये पर इल्तिजा न करे

(इल्तिजा = प्रार्थना, विनय, निवेदन, गुज़ारिश)

-क़तील शिफ़ाई

Live private mehfil in Kenya 1970






Wo dil hi kya tere milne ki jo dua na kare
main tujhko bhool ke zinda rahoon khuda na kare

rahega saath tera pyaar zindagi bankar
ye aur baat meri zindagi wafa na kare

ye theek hai nahin marta koi judaee mein
khuda kisi ko kisi se magar juda na kare

suna hai usko mohabbat duayen deti hai
jo dil pe chot to khaaye magar gila na kare

agar wafaa pe bharosa rahe na duniya ko
to koi shakhs mohabbat ka hausala na kare

bujha diya hai naseebon ne mere pyaar ka chaand
koi diya meri palkon pe ab jalaa na kare

zamaana dekh chuka hai parakh chuka hai use
'Qateel' jaan se jaaye par iltija na kare

-Qateel Shifai

Uski baaten bahaar ki baaten/ उसकी बातें बहार की बातें

उसकी बातें बहार की बातें
वादी-ए-लालाज़ार  की बातें

(वादी-ए-लालाज़ार = गुलाब के फूलों की वादी)

गुल-ओ-शबनम का ज़िक्र कर ना अभी
मुझको करनी है यार की बातें

(गुल-ओ-शबनम = फूल और ओस)

मखमली फ़र्श पे हो जिनकें कदम
क्या वो समझेंगे ख़ार की बातें

(ख़ार = काँटा)

शेख़ जी मैकदा है काबा नहीं
याँ तो होंगी ख़ुमार की बातें

(शेख़ = धर्माचार्य)

इश्क़ का कारवाँ चला भी नहीं
और अभी से ग़ुबार की बातें

(ग़ुबार = गर्द, धूल)

ये क़फ़स और तेरा ख़याल-ए-हसीं
उस पे हरसू बहार की बातें

(क़फ़स = पिंजरा), (ख़याल-ए-हसीं = ख़ूबसूरत याद/ ख़याल), (हरसू = हर तरफ़)

याद है तुझसे गुफ़्तगू करना
कभी इश्क़, कभी रार की बातें

ऐ नसीम-ए-सहर मुझे भी सुना,
गेसू-ए-मुश्क़बार की बातें

(नसीम-ए-सहर = बयार, हल्की हल्की बहती हुई हवा), (गेसू-ए-मुश्क़बार = सुगन्धित और ख़ुशबूदार बाल/ ज़ुल्फ़ें)

जब सुकूँ है कफ़स में ऐ 'राही'
क्यूँ करें हम फ़रार की बातें

(क़फ़स = पिंजरा)

-सईद राही










Uski baaten bahaar ki baaten 
Waadi-e-lalazaar ki baaten

Gul-o-shabnam ka jikr kar na abhi
Mujhko karni hai yaar ki baaten

Sheikh maikada hai kaaba nahin
Yaan to hongi khumaar ki baaten

Ishq ka kaarwaan chala bhi nahin
Aur abhi se gubaar ki baaten

Ye kafas aur tera khayaal-e-hasin
Us pe harsoo bahaar ki baaten

-Saeed Rahi

Gham mujhe hasrat mujhe wehshat mujhe sauda mujhe/ ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे

ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे
एक दिल देके ख़ुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे

(हसरत = कामना), (वहशत = पागलपन, दीवानगी), (सौदा  = उन्माद)

है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू,
मैंने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे

(हुसूल-ए-आरज़ू = इच्छा-पूर्ती), (तर्के-आरज़ू = इच्छाओं का त्याग)

ये नमाज़-ए-इश्क़ है कैसा अदब किसका अदब
अपने पा-ए-नाज़ पर करने भी दो सजदा मुझे

(नमाज़-ए-इश्क़ = प्रेम की प्रार्थना/ पूजा), (अदब = आदर), (पा-ए-नाज़ = प्रेमिका के पैर)

देखते ही देखते दुनिया से मैं उठ जाऊँगा
देखती की देखती रह जाएगी दुनिया मुझे

-सीमाब अकबराबादी




इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

कह के सोया हूँ ये अपने इज़्तराब-ए-शौक़ से
जब वो आयेँ क़ब्र पर फ़ौरन जगा देना मुझे

(इज़्तराब-ए-शौक़ = चाहत/ अभिलाषा की बैचैनी/ व्याकुलता)

सुबह तक क्या क्या तेरी उम्मीद ने ताने दिये
आ गया था शाम-ए-ग़म एक नींद का झोंका मुझे







Gham mujhe hasrat mujhe wehshat mujhe sauda mujhe
Ek dil dekar kuhda ne de diya kya kya mujhe

Hai Husool-e-aarzoo ka raaz tarq-e-aarzoo
Maine dunia chhod di to mil gayi dunia mujhe

Ye namaz-e-ishq hai kaisa adab kiska adab
Apne paa-e-naaz par karne bhi do sazda mujhe

Dekhte hi dekte duniya se main uth jaaoonga
Dekhti ki dekhti reh jaayegi duniya mujhe

-Seemab Akbarabadi

Nama gaya koi na koi naamabar gaya/ नामा गया कोई न कोई नामाबर गया

नामा गया कोई न कोई नामाबर गया
तेरी ख़बर न आई ज़माना गुज़र गया

(नामा = पत्र), (नामाबर = संदेशवाहक, डाकिया)

हँसता हूँ यूँ कि हिज्र की रातें गुज़र गईं
रोता हूँ यूँ के लुत्फ़-ए-दुआ-ए-सहर गया

(हिज्र = ज़ुदाई, बिछोह), (लुत्फ़-ए-दुआ-ए-सहर = सुबह की प्रार्थना का मज़ा)

अब मुझ को है क़रार तो सब को क़रार है
दिल क्या ठहर गया कि ज़माना गुज़र गया

(क़रार = चैन)

या रब नहीं मैं वाक़िफ़-ए-रुदाद-ए-ज़िन्दगी
इतना ही याद है कि जिया और मर गया

(वाक़िफ़-ए-रुदाद-ए-ज़िन्दगी = ज़िन्दगी की दास्तान/ दशा से परिचित)

-सीमाब अकबराबादी




Nama gaya koi na koi naamabar gaya
teri khabar na aai zamaana guzar gaya

hansta hoon yoon ke hijr ki raaten guzar gayin
rota hoon yoon ke lutf-e-duaa-e-saher gaya

ab mujko hai qaraar to sab ko qaraar hai
dil kya thahar gaya ke zamaana thahar gaya

ya rab nahin main waakif-e-rudaad-e-zindagi
itna hi yaad hai ke jiya aur mar gaya

-Seemab Akbarabadi

Shab-e-gham ae mere allah basar bhi hogi/ शब-ए-ग़म ऐ मेरे अल्लाह बसर भी होगी

शब-ए-ग़म ऐ मेरे अल्लाह बसर भी होगी
रात ही रात रहेगी के सहर भी होगी

(शब-ए-ग़म = दुःख की रात), (सहर = सुबह)

मैं ये सुनता हूँ के वो दुनिया की ख़बर रखते हैं
जो ये सच है तो उन्हें मेरी ख़बर भी होगी

चैन मिलने से है उनके न जुदा रहने से
आख़िर ऐ इश्क़ किसी तरह बसर भी होगी

(बसर = गुज़ारा, जीवन-निर्वाह)

-सीमाब अकबराबादी




Shab-e-gham ae mere allah basar bhi hogi
raat hi raat rahegi ke saher bhi hogi

main ye sunta hoon ke wo duniya ki khabar rakhte hain
jo ye sach hai to unhe meri khabar bhi hogi

chain milne se hai unke na juda rehne se
aakhir ae ishq kisi tarha basar bhi hogi

-Seemab Akbarabadi

Mujhse milne ke wo karta tha bahaane kitne/ मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने

मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने
अब गुज़ारेगा मेरे साथ ज़माने कितने

मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन
सोचता हूँ मुझे आए थे उठाने कितने

जिस तरह मैंने तुझे अपना बना रखा है
सोचते होंगे यही बात न जाने कितने

तुम नया ज़ख़्म लगाओ तुम्हें इस से क्या है
भरने वाले हैं अभी ज़ख़्म पुराने कितने

-सीमाब अकबराबादी

Jagjit Singh - Private Mehfil 


Chitra Singh - Private Mehfil  



Mujhse milne ke wo karta tha bahaane kitne
Ab guzaarega mere saath zamaane kitne

Main gira tha to bahot log ruke the lekin
Sochta hoon mujhe aaye the uthaane kitne

Jis tarah maine tujhe apna bana rakha hai
Sochte honge yahi baat na jaane kitne

Tum naya zakhm lagao tumhe isse kya hai
Bharne waale hain abhi zakhm puraane kitne

-Seemab Akbarabadi

Na ho gar aashna nahin hota/ ना हो ग़र आशना नहीं होता

ना हो ग़र आशना नहीं होता
बुत किसी का ख़ुदा नहीं होता

(आशना = मित्र, दोस्त, यार, प्रेमी या प्रेमिका)

तुम भी उस वक़्त याद आते हो
जब कोई आसरा नहीं होता

दिल में कितना सुक़ून होता है
जब कोई मुद्दआ नहीं होता

हो न जब तक शिकार-ए-नाकामी
आदमी काम का नहीं होता

ज़िन्दगी थी शबाब तक 'सीमाब'
अब कोई सानेहा नहीं होता

(सानेहा = आपत्ति, मुसीबत, दुर्घटना)

-सीमाब अकबराबादी 




Na ho gar aashna nahin hota 
but kisi ka khuda nahin hota

tum bhi us waqt yaad aate ho
jab koi aasraa nahin hota

dil mein kitna sukoon hota hai
jab koi mudd'aa nahin hota

ho na jab tak shikaar-e-naakami
aadmi kaam ka nahin hota

zindagi thi shabaab tak 'Seemab'
ab koi saaneha nahin hota

-Seemab Akbarabadi